मेरा भारत लौटा दो 8
काव्य संकलन
वेदराम प्रजापति
‘’मनमस्त’’
समर्पण
पूज्य पितृवरों के श्री चरणों में सादर
दो शब्द-
प्यारी मातृभूमि के दर्दों से आहत होकर, यह जनमानस पुन: शान्ति, सुयश और गौरव के उस युग-युगीन आनन्द के सौन्दर्य की अनुभूति की चाह में अपने खोए हुए अतीत को, पुन: याद करते हुए इस काव्य संकलन – ‘’मेरा भारत लौटा दो’’ के पन्नों को, आपके चिंतन झरोखों के सामने प्रस्तुत कर, अपने आप को धन्य मानने का अभिलाषी बनना चाहता है। सादर ।।
वेदराम प्रजापति
‘’मनमस्त’’ डबरा
दशहरा--
दशहरा, असत पर सत जीत का, त्यौहार है प्यारे।
प्रभू की महंत अनुकंपा, यही उपहार है प्यारे।।
न भूलोंगो कभी-भी, मानवी की यह धरोहर है-
चिंतन-मनन की दास्तां का, सार है प्यारे।।
कहानी सही नहीं है, यह हकीकत, नीति का परिचम-
गगन में बहुत ऊंचा हो, सदां फहराएगा प्यारे।।
गगन अरू, चांद, तारे, आसमां, धरती रहे जब तक-
सुयश-सूरज-सा चमकेगा, न डूबेगा कभी प्यारे।।
यही जन-जन तमन्ना है सभी मनमस्त हो, जीलै-
मिलैं सब एक दूजे से, मिलन त्यौहार है प्यारे।।
(रन फॉर यूनटी)
तुम्हारे मार्ग पर चलता रहा, भारत भुवन है।
एकता के ओ मसीहा, तुम्हें शत-शत नमन हैं।।
एकता की मशालों के पुरोधा आप कहलाते।
अखण्डित देश को रखने की शिक्षा आप से पाते।।
ऐसे लोह पुरूषों से बना भारत अमन है।।
वारडोली का सत्याग्रह तुम्हीं को याद करता है।
विषम संघर्ष खेड़ा का, तुम्हीं को नमन करता है।
बने सरदार भारत के, ध्वनित सारा गगन है।।
तुम्हारे कार्य की लेखा, बना आदर्श जीवन का।
एकता दौड़ में आओ, करो नेतृत्व आयोजन का।।
तुम्हीं आदर्श हम सबके, तुम्हें शत-शत नमन हैं।।
तुम्हारी बीर गाथाऐं, तिरंगा आज गाता है।
तुम्हीं आजादी के नेता, गहन भारत से नाता है।
मुबारिक हो जन्मदिन ऐ, तुम्हें शत-शत नमन है।।
बाल दिवस---
देश की तकदीर ही हैं दिव्यतम बच्चे हमारे।
भाव-भीना प्यार का उपहार दो, जनगण पुकारे।।
इस धरा की आनि हैं, अभिमान है अरू शान हैं।
ज्ञान हैं, विज्ञान है अरू देश हित कुर्बान है।
राष्ट्र के ऐ ही धरोहर, और हम सब के सहारे।।
हैं अपेक्षाएं इन्हीं से विश्व हित कल्याण की।
राष्ट्र के कौशल ऐही हैं, ज्योति, स्वाभिमान की।
विश्व शांति, ज्योति जगमग से भरे गौरव सितारे।।
है ऊषा की रश्मियों से अरू बसन्ती पुष्प सुन्दर।
जागरण के ऐ सिपाही, क्रान्ति के ऐ ही समन्दर।।
ज्वार-भाटा इन्हीं में है और हैं निर्माण सारे।।
विश्व की तस्वीर है, तदवीर हैं, बरवीर भी हैं।।
सोच की युग पीर भी हैं, खीर भी हैं, क्षीर भी हैं।।
इन्हें रखो मनमस्त हरक्षण, त्रयी रूपक ब्रम्ह सारे।।
युवा दिवस 12जनवरी
चेतना के मसीहा-- (विवेकानन्द)
धर्म की मेख जिन गाढ़ी, विश्व के पटल पर प्यारे।
भारत मां सपूतों में, विवेकानन्द एक न्यारे।।
कर्म ही ध्येय था जिनका, जीवन की कहानी में।
अंगद-पाद थे जिनके, अडिग सिद्धान्त थे सारे।।
गुरू में आस्था गहरी, अटल पाथेय था मन में।
कदम पीछे नहीं मोड़े, न जीवन में कभी हारे।।
जमाना याद करता है, अनेकौं, दास्तां उनकी।
युग के वे मसीहा थे, गहरी चेतना बारे।।
छुपा है राज सब गहरा, उनकी हर कहानी में।
भुलाए जा नहीं सकते, वे ही युगपुरूष थे म्हारे।।
विजेता बना है भारत, जिनका अनुकरण पाकर।
कोई अवतार थे सच में, बने जो विश्व ध्रुवतारे।।
जो यादों में समाए हैं, सहस्त्रों नमन है उनको।
जहां मनमस्त हैं उनसे, वे हैं देवता प्यारे।।
न्याय में उठती सुनामी, न्यायहित किस द्वार जाए---
न्याय का डिगता सिंहासन-न्याय क्यों मुहताज पाय---
क्या हुआ इस देश को, जहां न्याय भी, बचकानी हो गई।
आम जनता की अदालत में, कहो किस तरह रो गई।
क्या बचा इस देश में चिंता यही है आज प्यारे।
न्याय की औकाद भी, किसके सिरहाने आज सो गई।
हर तरफ उंगली उठी है, कौन, किसको, क्या बताए।।
राष्ट्र है स्तब्ध, भरोसा टूटता, जन क्रान्ति जैसा।
कहां गई सुप्रीम श्रद्धा, न्याय भी अन्धा यह कैसा।।
दे रहा उत्तर ना कोई, मौनता इतनी बढ़ी कयों।
किन अहंकारों ने दबोचा, आज का परिवेश ऐसा।
कहां व्यवस्था लोकतंत्री आज कोई तो बताए।।
किस गुहा में छिप गई, जन-मन बरीयता आज बोलो।
इस धुंधल के कुहा में, कौन के षडयंत्र खोलो।।
नए वर्ष का भोर कैसा, क्या कभी मन में विचारा।
त्रासदी की इस दिशा के कौन से हैं द्वार खोलो।
जहां डिगे धर्मराज आसन, मनमस्त कहां सुख-शांति पाए।।
सीख लो कुछ जोड़ना --
हो सके तो, सीखलो कुछ, जोड़ना।
भूलकर, सीखो न साथी, तोड़ना।।
मानवी की राह यह तो है नहीं-
निर्माण की गई वस्तु को, फिर फोड़ना।।
साथ-साथी का निभाते हैं सभी-
बीच राहों में कभी नहीं छोड़ना।।
फूल का खिलना सबै अच्छा लगै-
कौन कहता है उसे कहीं तोड़ना।।
कार्य की पूजा सदां होती जिगर-
व्यर्थ के संवाद, क्यों कर, गोड़ना।।
मूर्ति तोड़े से, मिटै इतिहास कब-
शोच हल्के की कहानी छोड़ना।।
है अगर दमखम तो लम्बी रेखा कर-
आम जन को, गलत पथ क्यों मोड़ना।।
कब तलक, सर्पीली चालैं चलोगे-
मनमस्त आओ, राह सीधी-जोड़ना।।
सियासत---
जिसका कोई नहिं मजहब, सियासत वो कहानी है।
बिना सुर-ताल का गायन, यही तो वो रवानी है।।
बुझाने दौड़ते वे ही, लगाई आग थी जिनने-
समझना बड़ा है मुश्किल, सभी यहां-पानी-पानी है।।
शिर पर आसमां जिसके, जमीं पर पैर उसके ही-
कहां तुम ठहर पाओगे, यही तो नानी-कहानी है।।
रहनुमां वे कहां होंगे, दबी जहां आग हो मुट्ठी-
बहाते अश्क झूठे हैं, बगावत मन में ठानी है।।
रिश्ते में भलां भाई, मगर दिल से जुदा हरदम-
कहां से भाई-चारा हो, दिले दुश्मन जो जानी है।।
मुफलिसी में सदां खतरा, किसी से पूंछ लेना तुम-
भयानक से भयानक है, जिसकी नहीं सानी है।।
इबादत गाह जो जितने, सलाहों के हुए अड्डे-
खुदा के नाम पर सब कुछ, सभी की जानी-मानी है।।
भला हो एक डाली पर, कांटे-फूल कब भाई-
रहो मनमस्त खुद बचके, यही तो जिंदगानी है।।
अंध संशोधन
तुम्हारा अंध संशोधन, कभी तूफान बन सकता।
राख में दबा, ये शोला कभी भी अंगार हो सकता।।
दबाओगे उसे कब तक, अंदर की घुटन-बस्ती-
सुलग ही आप जाएगी, झोंखा-हवा दे सकता।।
नियत में खोट-सा लगता, भलां कोई कहे कुछ भी-
गजल का यह सफरनामा, कभी मक्ता भी हो सकता।।
गर्म माहौल है इससे, इस पर सोच लो फिर से-
तुम्हारी इस सियासत को, झटका बड़ा दे सकता।।
हमारी राय कुछ मानो, जरा माहौल तो बदलो-
सख्त आंधी की दहशत है, अंधेरा और बढ़ सकता।
संभलकर, सांस कुछ लेलो, अधिक छाती फुलाओ मत-
करलो समझदारी कुछ, मंजर भटकता लगता।।
आज मोबाइल के जरिए दुनियां हो गई छोटी-
वर्षों जो कभी होता, पलों में वो ही हो सकता।।
रहनुमा बनो तो हमारे, न खेलो खून की होली-
बने मनमस्त यह दुनियां, बीज ऐसे भी बो सकता।।
कांटों से सजी सेजें--
सफर बहुतक चले, लेकिन-वो दूरी कम नहीं होती।
सर पै आसमां धर के, ये रातें, रातभर रोतीं।।
सियासत में, नहीं सोचा, कितना नशा होता है-
ये मजहब की दुकानें भी, कभी-भी चैन नहीं सोती।।
समझे वो नहीं तुमको, तुमने आग कैसे दी-
मगर, अच्छा नहीं ये तो, बगावत कम नहीं होती।।
तुम्हारे कारनामों पर, रोता आसमा अब भी-
किसी से पूंछ भर लेना, कहानी कम नहीं होती।।।
चाहत थी मिलाई की, जुदाई का सफर कैसा-
फकत इंसान बन जाओ- इंशानियत कम नहीं होती।।
इबादतगाह क्यों तोड़ो, लिखे ये खत बुजुर्गों के-
यहीं है राम-अल्लाह भी, मुहब्बत कम नहीं होती।।
जमाना कहेगा इकदिन, जमाने की कहानी को-
मेरे भोले से बचचे हो, निशानी कम नही होती।।
दयीं कुर्बानियां कितनीं निशानी को बनाने में-
ये कांटों से सजीं सेजें, कभी मनमस्त नहीं होतीं।।