unknown connection - 47 in Hindi Love Stories by Heena katariya books and stories PDF | अनजान रीश्ता - 47

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अनजान रीश्ता - 47

अविनाश कार चला रहा था । पर उसकी आंखों के सामने जैसे वह सारी घटनाएं किसी चलचित्र के समान घूम रहे थे । वह बस जैसे बचपन कि फिर से वही सारी यादों में खो गया था । वह कार को रोक देता है । और मानो ये सुमसान रास्ता जैसे उसके दिल टूटने की गवाही दे रहा हो । वह बस दूर आसमान की ऑर देख रहा था । की कहां से कहां पहुंच गया । चाहे तो वह दुनिया की हर चीज़ चुटकी बजाकर ले सकता है । लाखो लड़कियां उसके आगे पीछे है पर फिर भी अभी भी क्यो उसी के पीछे ये दिल क्यों धड़क रहा है। क्यो आखिर क्यों !?? । वह कार की डिक्की में से वाइन कि बोतल निकलते हुए वह बस तालाब के किनारे बैठे हुआ था । वह पत्थर पानी मै फेक रहा था । तभी वह बोतल खोलता है । और एक घूंट पिता है । मानो इस वाइन का स्वाद भी उसकी जिंदगी जैसा ही था । ज्यादातर कड़वा और थोड़ा सा मीठा जो की सिर्फ नाम कि ही मिठास थी । वह सिगरेट जलाते हुए फिर से आसमान की और देख रहा था । मानो जैसे वह किसी से बात कर रहा हो । वह अपने आंसू रोकने कि कोशिश कर रहा था । उसकी आंखे साफ साफ दर्द बयान कर रही थी । वह सिगरेट पीते हुए अपने फोन मै एक फोटो गेलरी का लोक खोलता है । तभी उसके सामने एक लड़की की तस्वीर आती है । जो कि एक लड़के के सामने मुंह बिगाड़ रही थी और लड़के के चहेरे पे एक बड़ी सी मुस्कुराहट थी । मानो यह जैसे उसकी आखिरी मुस्कुराहट थी । इसलिए शायद उसकी मुस्कुराहट खिली हुई थी । वह मुस्कुराहटें हुए दर्द भारी आंखो से तस्वीर की ऑर देख रहा था । अविनाश लड़की चेहरे पर हाथ से स्पर्श कर रहा था । मानो वह तस्वीर मै नहीं सामने उसके पास बैठी हो । वह दर्द के साथ हंसते हुए कहता है ।

अविनाश: हहाहाहहाहाहा ...... यू आर हार्टलेस पर्सन पारुल व्यास तुम सबसे पत्थर दिल इंसान हो । आई हेट यूं बट आई कांट वाय !!! वाय !!!! आखिर क्यों मै नफरत क्यों नहीं कर पा रहा !!?
पारुल: ( खिलखिलाते हुए ) हिहिहिही बिकोज बंदर कही के तू मुझसे प्यार करता है । याद है जब एक लड़के ने मुझे प्रपोज किया था । तूने उस बिचारे को कितना पीटा था । तो फिर बताओ कैसे कर सकते हो नफरत जब प्यार है मुझसे ।
अविनाश: ( आंखे मलते हुए देख रहा था कि कहीं वह सपना तो नहीं देख रहा। वह पारुल के चहेरे को छूते हुए कहता है ।) तुम.... यहां कैसे !!! ? तुम
पारुल: ( मुस्कुराते हुए अविनाश की ऑर देखते हुए ) तुम जहां होगे वहां मै भी साथ चलूंगी ।
अविनाश: ( दर्द के साथ हंसते हुए ) हहाहा.... लायर झूठी ... तुम वो सारे वादे झूठे थे । ये प्यार मोहब्बत ईश्क सब फर्जी बाते है । खुद को ही देख लो कितनी बार तोड़ा है तुमने मेरा दिल । और उस आखिरी मुलाकात की तरह इसबार भी वैसे ही खूबसरत बनके मेरा दिल तोड़ने आ गई हो फिर से । ( पारुल के बाल कान के पीछे करते हुए ) ।
पारुल: ( मुस्कुराते हुए ) अच्छा उस दिन तुम बात अधूरी छोड़ के चले गए थे । मै तो वहीं बैठी थी ।
अविनाश: कैसे बैठता मै वहां तुम्हारे साथ जब तुम्हारी आंखों में नफरत थी मेरे लिए । पहली बार उस इंसान के दिल में नफरत थी जो मुझसे बेइंतेहा मोहब्बत करता था । तुम ही बताओ ..!? ( वाइन पीते हुए इस दर्द से पीछा छुड़ाने कि नाकाम कोशिश कर रहा था । ) ।
पारुल: हां तो तुम कातिल हो और कातिल को कोई प्यार भरी नजरो से देखता है भला।
अविनाश: ( चिल्लाते हुए ) मैंने नहीं मारा तुम्हारे मामा पापा को !!!! जब मै उस दिन गया तुम्हारे घर तो वो लोग मर चुके थे । परी !!! मै कातिल नहीं हूं । तुम्हे सच मे लगता है मे !!! ( गिड़गिड़ाते हुए ) तुम्हारा अवी कभी ऐसा काम कर सकता है । जिससे तुम्हे चोंट पहुंचे। उस दिन जब मै तुम्हारे घर पर तुमसे मिलने आ रहा था । तब मैंने देखा कि काफी लोग तुम्हारे घर के आसपास जमा थे । जब मैं अन्दर गया तो । तुम्हारे पापा बेहोश थे । और तुम्हारे मॉम दूसरे दरवाजे की ऑर उंगली कर रही थी लेकिन जब मै वहां जाने वाला था । तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया । और मै उन पर गिर गया । और खून मेरे कपड़ों पर लग गया । उसी वक्त तुम आई । किस्मत भी कितनी कमिनी है यार !! ।
पारुल: ( अविनाश की ऑर देखते हुए ) ये बात तुम मुझे उस शाम भी बता सकते थे ।
अविनाश: हहाहाहा.... तुम सुनने के लिए तैयार थी !?।
पारुल: ( मुस्कुराते हुए सिर ना मे हिलाते हुए ) ।
अविनाश: ( मुसकुराते हुए ) और तुमने तो जान बूझकर मेरी मां को चोंट पहुचाई थी । तो मै तुम्हे कैसे माफ़ करता बताओ ।
पारुल: पर फिर भी तुम मुझसे करते हो !! क्यों !?।
अविनाश: ( आंसमन की ऑर उंगली करते हुए ) मै थोड़ी देर पहले मां को वहीं कह रहा था । की मै क्यो छोड़ नहीं पा रहा तुम्हे जब मैंने खुद अपनी आंखो से देखा था । मेरी मां सीढ़ियों से तुम्हारी वजह से गिरी थी l लेकिन फिर भी मानने को तैयार नहीं था । सबसे हंसने वाली बात यह है कि मै किसी को बता भी नहीं सकता क्योंकि फिर तुम्हे तकलीफ़ होगी । मेरे डैड भी नफरत करते है अभी भी मुझसे क्योंकि उन्हें लगता है कि मॉम मेरी वजह से सीढ़ी से गिरी । बताओ परी ! ( चहेरे को हाथ में लेते हुए ) कैसे प्यार कर सकता हूं मै अपनी मां के कातिल से !!।
पारुल: ( मुस्कुराते हुए प्यार भरी नजरो से बस अविनाश की ऑर देख रही थी ) ।
अविनाश: ( दर्द के साथ हंसते हुए वाइन पी रहा था ) ये देख रही हो ( दिल की ऑर उंगली करते हुए ) अभी इतना दुख रहा है जैसे मानो किसीने मेरे सीने मे निकाल लिया हो ।
पारुल: तो फिर मुझे छोड़ क्यों दिया अगर इतना ही दर्द है तो !!?
अविनाश: हाहाहाहाहा....... आहहाहाह.... तो तुम क्या चाहती हो मै इसे व्यवहार करू जैसे कुछ हुआ ही नहीं ।
पारुल: ( सिर ना मे हिलाते हुए ) तो मेरे बिना जी पाओगे !! ।
अविनाश: ( आंखे बंद करते हुए सिर ना मे हिलाते हुए ) ...।
पारुल: तो...?।
अविनाश: वैसे ही जैसे इतने साल तक जी रहा था । मशीन बनकर । और तुम्हे क्या तुम्हे कोनसा फर्क पड़ेगा मै मरू या ....।
पारुल: ( मुस्कुराते हुए ) फर्क नही पड़ता तो तुम अभी तक याद थोड़े रहते ।
अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) जाओ अपने मंगेतर के पास जाओ फिर से मेरे दिल के साथ मत खेलो ।
पारुल: अच्छा लगता है तुम जेल्स हो ! ।
अविनाश: ( पारुल को दोनो हाथो से पकड़कर अपनी ऑर करते हुए ) तुम्हे लगता है अगर में तुम्हे पाना चाहूं और कोई मुझे रोक सके !!? कभी भी नहीं !! वो तो बस!।
पारुल: वो तो क्या..!?।
अविनाश: थक गया हूं अब मै यार अगर ऐसा ही रहा तो मुझे नहीं लगता अब मुझमें प्यार बाकी रहेगा अब । जो भी रहेगी वो सिर्फ नफरत । इसलिए...।
पारुल: इसलिए तुम अपनी परी को किसी ऑर को देके आ गए ..!?।
अविनाश: ( मुंह बिगड़ते हुए ) हां तो तुम कोनसा पहली भी मेरी थी । अगर होती तो मुझे सफाई नहीं देनी पड़ती की में ....। ( तभी अविनाश का फोन बजता है । )
हेल्लो.... अरे.... ना...ही... या..र.. मै... ने.... पी.. न... ही... र...खी.....
विशी: ( अविनाश का मैनेजर ): तुम कहां हो !!?
अविनाश: ( हंसते हुए ) में.... मै ......तो... वो.... प ..री... है.. ना उस.. के... साथ....( अपनी बगल मै देखते हुए ) अरे!! परी कहा गई तुम.... देखो ... अब तुम...ने नाराज़ कर दिया... मेरी परी .... को । गंदे...इंसान... बहुत ही .... गंदे... हम्म।
विशी: ऑके फाईन मै उससे माफी मांग लूंगा पहले ये बताओ तुम्हारे आसपास क्या है ।
अविनाश: एक बड़ा... सा रास्ता.... कार... पीपी... पीपीपी.... फिर उम्म.... तालाब..... और जंगल की जाडिया..... और खूबसूरत आसमान । परी .... परी मुझे तालाब मै खेलने के लिए बुला रही है । ....
विशी: ( डरते हुए ) अविनाश ध्यान से सुनो वो परी नहीं है । वह गंदे इंसान है । जो परी का मास्क पहना हुआ है । और परी मेरे साथ है तो मै उससे लेकर आ रहा हूं तुम तालाब मै नहीं जाओगे ठीक है ।
अविनाश: ( धुंधला धुंधला दिख रहा था !!) ओके.... मै नहीं जाऊंगा ... पिं... की... प्रो...मिश.. पर परी को साथ लेकर आना ... तुम्हे पता है ..... उस मास्क वाले ... अंकल ने परी जितने.... खूबसरत.... लग रहे .... है । और बिल्कुल... उस शाम की .... तरह कपड़े .... पहने है ।.... वैसे ही .... मुस्कुरा रहे ... है मेरी ... प... री... ( तालाब की ऑर जाते हुए ) वैसे ही हंस .... र.. है... है..।

अविनाश के कदम लड़खड़ा रहे थे । वह तालाब की ऑर जा रहा था । पर उससे कई सारे तालाब दिख रहे थे। वह अपने सिर को अपने दोनो हाथो से चांटा मारते हुए । आंखे खोलने की कोशिश करता है । दूसरी ओर विशी परेशान था । वह किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि अविनाश को चोंट पहुंचे । वह कार चला रहा था । की तभी अविनाश की कार उसको दिखाई देती है । वह जल्दी से कार को रोकते हुए । नीचे तालाब के रास्ते पर दौड़ते हुए जाता है । वह देखता है कि अविनाश लड़खड़ाते हुए तालाब की ऑर जा रहा था । वह जल्दी से अविनाश पानी में गिरे उससे पहले ही अविनाश को लेकर जमीन पर गिर जाता है । अविनाश विशी को देखकर मुस्कुराते हुए कहता है ।

अविनाश: अरे!! विशी.... ( मुस्कुराते हुए ) तुम परी को लेकर आ गए...।
विशी: चलो घर...।
अविनाश: नहीं!! पह...ले परी... कहां .. है?
विशी: अविनाश!!.।
अविनाश: प्प..री.. मै उसी के पास ... जा रहा... था । तुम.. ने .. क्यो .. रोका.. । बोलो... ।
विशी: ( गुस्सा काबू मै लाते हुए ) क्योंकि परी घर पर तुम्हारा इंतजार कर रही है ।
अविनाश: अरे... तो ... फिर... ( तालाब की ऑर देखते हुए ) हाहाहाहाहा... मै भी ... पागल हूं... परी ... घर ... पर है ... मुझे ... यही ... दिख ... रही ...थी ...।
विशी: चले!। ( अविनाश को हाथ देते हुए )
अविनाश: ( विशी के सहारे उठते हुए ) हा ... वैसे.. मै ... तुम.. है कुछ... ज्यादा ही परेशान करता हूं ना ... विशी....।
विशी: नहीं .. ( कार स्टार्ट करते हुए ) ।
अविनाश: सो.... री.... । ( यह कहते हुए वह सो जाता है )।

विशी अविनाश की ऑर ही देखे जा रहा था । ये दूसरी बार है जब वह अविनाश को इतना लाचार देख रहा है । और अविनाश वो भी इतनी बेबसी के साथ कभी नहीं देखा । वह बस सोच रहा था । की अब क्या हो गया अभी कल तो वह बहुत ही खुश था और एक दिन में ऐसा क्या हो गया जो उसने खुद की इसी हालत बना ली । कभी कभी तो लगता है जैसे पूरी दुनिया का दर्द जैसे अविनाश की किस्मत मै लिखा है । वह बस सोच रहा था कि अविनाश बाकी सभी लोगो कि तरह एक हंसती खेलती जिंदगी क्यो नहीं बीता सकता । काश !! काश ऐसा हो पाता ।