नारीयोत्तम नैना
भाग-5
राकेश के बेडरूम में कोलाहल होता हुआ देखकर धनीराम ने द्वार खोला--" तुम दोनों भाई-बहन फिर लड़ने लगे।"
राकेश को भय था कि नूतन कहीं पापा को सबकुछ बता न दे। नूतन ने सामान्य होकर कहा- "देखो न पापा! राकेश ने एक हजार रूपये दो दिन का बोलकर मुझसे उधार लिए थे। आज पुरा एक वीक हो गया है। लेकिन राकेश रूपये देने का नाम ही नहीं ले रहा है।" नूतन ने बात को बदलते हुये कहा।
"हां हां दे दूंगा, दे दूंगा। मैं कहीं भागे थोड़े ही जा रहा हूं।" राकेश भी नाटकीय रंग में रंगते हुये बोला।
"तु कहां से देगा बे। बेरोजगार कहीं का। तु तो खुद पाॅकेटमनी पर पल रहा है।" धनीराम बोले।
नुतन की हंसी निकल पड़ी।
"बेटी नूतन!" धनीराम बोले।
"जी पापा!" नूतन ने प्रतिउत्तर दिया।
"तुझे अगर रूपये चाहिये हो तो अपनी मां से ले लेना। और आगे से इस फुफ़्तखोर को एक रूपया मत देना।
"जी पापा।" नूतन ने सहमती व्यक्त की।
नूतन के समझाने पर राकेश सहमत नहीं हुआ। कामिनी के विरूद्ध वो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था।
"तु चिन्ता मत नूतन। राकेश जैसे तेरा भाई है वैसे मेरा भी। हम दोनों उसे कामिनी नाम के दलदल से बाहर निकालकर ही रहेंगे।" काॅलेज कैम्पस में नैना ने नूतन को सांत्वना दी।
"मगर कैसे नैना? राकेश तो कामिनी के विषय में कुछ सुनने-समझने को तैयार ही नहीं है।" नूतन की चिंता बढ़ती ही जा रही थी।
"देखो नैना दी! मैं आपको अपनी बड़ी बहन मानता हूं। मैं आपकी बहुत रिस्पेक्ट भी करता हूं। कामिनी के संबंध में यदि आप मुझसे कुछ उटपटांग कहने आई है तो प्लीज यहां से चली जाईये।" महाविद्यालय परिसर में उपस्थित राकेश ने नैना से कहा।
"मुझे भी कोई शौक नहीं है तुझसे बात करने का। मुझे तेरी बहन नूतन की चिंता है? जो तेरे लिए चिंतित है। यही सोचकर मैं तुझे समझाने आई थी। मगर••• विनाश काले विपरीत बुध्दि।" कहते हुये नैना राकेश के सामने से चली गई।
राकेश इंजीनियरिंग फर्स्ट ईयर का छात्र होकर बहन नुतन के साथ ही बीसीजी काॅलेज देवास में अध्ययनरत था। नूतन और नैना फाइनल ईयर में थे।
नुतन से रहा नहीं गया। इससे पहले की बहुत देर हो जाये, उसने अपने भाई नैना और कामिनी के संबंध के विषय में अपने माता-पिता को बता ही दिया। धनीराम और समिधा दोनों ने मिलकर मामले की गंभीरता को परखा।
"राकेश! तेरे लिए अभी शादी-वादी उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना की कॅरियर बनना।" राकेश की मां समिधा बोली।
"अरे भई! एक बार अच्छी जाॅब लग जाये। फिर तु जहां कहेगा हम तेरी शादी करवा देंगे।" धनीराम ने स्नेह से काम लिया।
"पापा! नूतन को जितनी स्वतंत्रता है ,क्या उतनी मुझे है? वह अपने पसंद का जीवनसाथी चुन सकती है और मेरे संबंध में कॅरियर बीच में आ रहा है।" राकेश अब खुलकर विरोध करने लगा था।
"नहीं पापा! शादी तो मैं कामिनी से ही करूंगा और वह भी जाॅब लगने के पहले। आखिर ये सब आपके बाद मेरा ही तो है!" यह राकेश का अहम बोल रहा था। धनीराम ने क्रोधित होने के बजाय ठण्डे दिमाग से काम लेना ज्यादा जरूरी समझा। राकेश जवान था। और पहली-पहली बार प्रेम में पढ़ा था। धनीराम ने कामिनी से भेंटवार्ता करने का निश्चय किया। उन्हें विश्वास था कि समझाने पर कामिनी उनकी बातें मानकर राकेश का पीछा छोड़ देगी।
नैना और नूतन भी अपने स्तर पर एक योजना पर काम करने लगे। अरविंद कुमार जो नैना का ही अन्यत्र काॅलेज अध्ययनरत डांस एण्ड ड्रामा काॅलेज का छात्र था, को अपनी योजना बताकर उसे सहयोग हेतु नैना ने सहमत कर अपने साथ मिला लिया।
समिधा अपने पति धनीराम का उतरा हुआ चेहरा देखकर समझ गयी। धनीराम कामिनी को समझाने में असफल हो चूके थे।
"समिधा! दुनिया में बहुत सी महिलाएं देखी। मगर कामिनी के जैसी अन्य कोई नहीं हो सकती।" धनीराम घर लौटते ही समीधा से बोले। निराशा उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी।
"क्या कहा उस कलमुंही ने?" समिधा क्रोधित होकर बोली।
"कहा क्या? वह बजाय राकेश से दुर होने के मुझे अपने सौन्दर्य का वशीकरण दिखाने लगी। अपने स्तनों से आंचल गिराकर उसने मुझे सम्मोहित करने का प्रयास किया।" अपना हृदय कठोर कर धनीराम समीधा से बोले।
अपने बेडरूम के द्वार पर खड़े-खड़े नूतन ने सब-कुछ सुन लिया। इस शांति प्रयास की असफलता की सुचना नूतन ने नैना को फोर पर दी। नैना ने अपना मनोबल कम नहीं होने दिया। नैना तपन से जाकर मिली। तपन वह लड़का था जो कामिनी की ठगी का पुर्व प्रताड़ित प्रेमी था। अपनी योजना तपन को बताकर वह एक अन्य युवक सुधांशु से भी मिली। कामिनी पर अपने ऐश्वर्य का जाल अरविंद पर फेंक दिया था। कामिनी बहुत चतुर थी। उसने अरविंद की दिखावटी योजना को भांप लिया। कामिनी के सहयोगी नृपेश और जयदीप ने अरविंद को बलपूर्वक बंधक बना लिया। अरविंद के साथ मारपीट कर कामिनी ने उससे दस लाख रूपये की मांग कर डाली। नैना ने अरविंद से संपर्क करना चाहा किन्तु कामिनी द्वारा अरविंद का मोबाइल जब्त कर लिया गया था। जिसके कारण अरविंद से संपर्क नहीं हो पा रहा था। अरविंद के प्राण संकट में थे। इस विचार ने नैना को कुछ व्याकुल तो अवश्य कर दिया।
तपन और सुधांशु के साथ पुलिस स्टेशन गई नैना ने कामिनी पर अरविंद का अपहरण का प्रकरण दर्ज करने का दबाव बनाया। विषय की गंभीरता को देखकर पुलिस त्वरित कार्रवाई करते हुये कामिनी के घर पहूंची। पुलिस के साथ अरविंद के माता-पिता भी थे। अरविंद के माता-पिता नैना पर अत्यधिक अप्रसन्न थे, क्योंकि नैना ने ही अरविंद को कामिनी के जाल में फंस जाने पर विवश कर दिया था। कामिनी कुछ भी नहीं उगल रही थी अपितु अपनी जान-पहचान का फायदा उठाकर इंस्पेक्टर ब्रजेश शर्मा को धमका लगी रही थी। कामिनी के व्यवहार पर इंस्पेक्टर ब्रजेश शर्मा को संदेह हो रहा था। कामिनी के घर के तलघर की सर्चिगं के दौरान पलंग पेटी में अरविंद के कराहने की आवाज़ आ रही थी। पुलिस जवानों ने पंलग पेटी खोलकर अरविंद को बाहर निकाला। अरविंद को सही सलामत देखकर उसके माता-पिता प्रसन्न हो गए। नृपेश और जयदीप के साथ कामिनी भी को गिरफ्तार कर लिया गया। सुधांशु और तपन की गवाही ने कामिनी को सज़ा दिलवाने में महती भूमिका निभाई। राकेश के सामने कामिनी का असली चेहरा आ गया था। कामिनी द्वारा अरविंद का अपहरण और उससे फिरौती की मांग के प्रकरण के विषय में जानकर राकेश की आंखे खुल गई। उसने सुधांशु और तपन के कामिनी के प्रति कड़वे अनुभव को भी श्रवण किया। वहीं पवित्रा को अपने सम्मुख देखकर राकेश आश्चर्यचकित हो गया। पवित्रा वहीं लड़की थी जो राकेश से प्रेम करती थी। मगर कामिनी के कारण राकेश ने पवित्रा को अस्वीकार कर दिया था। पवित्रा इन सबके बाद भी राकेश को चाहती थी। यह नैना की ही योजना थी। उसने अवसर का लाभ उठाकर ऐन वक्त राकेश के सम्मुख पवित्रा को उपस्थित कर दिया। राकेश ग्लानि से भर हो उठा। पवित्रा के स्वयं के प्रति समर्पित प्रेम को राकेश ने स्वीकार करने में अब जरा भी देर नहीं की। राकेश और पवित्रा का मधुर मिलन देखकर नूतन की समस्त चिंताएं समाप्त हो गयी। नैना का बहुत प्रसन्न थी।
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एक दिन नैना के पिता ने एमएलए जितेंद्र ठाकुर कार्यालय पर आकर सौजन्य भेंट की। महेश सोलंकी के चेहरे पर चिंता की लकीरे साफ देखी जा सकती थी। विकास नगर वासियों द्वारा नैना और उनके संबंध पर उठ रही उंगलीयों से महेश सोलंकी दुःखी थे। जितेंद्र ठाकुर ने मामले की गंभीरता को देखते हुए महेश सोलंकी के सामने उनकी बेटी से विवाह करने का प्रस्ताव रख दिया। विधायक महोदय यह भी बोले कि ये कदम वे केवल इसलिए नहीं उठा रहे है क्योंकि लोग उन दोनों के विषय में उल-जलूल बातें कर रहे बल्कि वे वास्तविकता में नैना से प्रेम करने लगे है। यदि महेश सोलंकी और उनकी बेटी सहमत है तब वे सामाजिक मान मर्यादा को ध्यान में रखकर नैना के साथ विवाह करना चाहते है। महेश सोलंकी को विधायक महोदय की बातों से आत्मीय सांत्वना मिली। अपनी पत्नी तरूणा और नैना की इस संबंध में अभिलाषा जानने के उपरांत उन्होंने विधायक महोदय को जवाब देने का आश्वासन देकर वे विधायक वाटिका से घर लौट आये।
तरूणा सोलंकी और स्मृति ये जानकर बड़ी प्रसन्न हुई कि क्षेत्र के एमएलए साहब ने स्वयं नैना का हाथ मांगा है विवाह के लिए। नैना और महेश सोलंकी की चिंता एक ही थी। राजा-राजवाड़े परिवार से संबंधित ठाकुर घराने से एक मध्यमवर्गीय परिवार का मेलजोल कैसे बनेगा? यदि नैना की जितेंद्र ठाकुर से शादी हो भी जाती है तब यह रिश्ता भविष्य में लम्बी दुरी तय करेगा इस बात पर संदेह था। कहीं बीच सफर में जितेंद्र ने नैना का साथ छोड़ दिया तब नैना का क्या होगा? और ठाकुर परिवार से विवाह के बाद नैना के अधिकार के लिए लड़ाई में अभी से महेश सोलंकी को पराजय दिखलाई पढ़ रही थी।
"हैलो!" जितेंद्र ठाकुर ने अपना मोबाइल फोन रिसिव किया।
"ये क्या मजाक है!" बेबाक नैना ने दुसरी तरफ से बोली।
"कैसा मजाक नैना?" एमएलए साहब बोले।
"आप जानते है मैं क्या कह रही हूं। आप मुझसे शादी करना चाहते है! ये मजाक नहीं यो क्या है? जबकी सारी दुनियां को पता है कि आपकी और तनु श्री भुल्लर की शादी होने वाली है।" नैना गुस्से में थी।
"मैंने तनुश्री को शादी के लिए अभी हां नहीं की है नैना! और मैंने तुम्हारे पिताजी पर इस शादी के लिए कोई दबाव नही डाला है। आपके पुरे परिवार की रजामंदी होगी, तब ही ये विवाह होगा। वर्ना नहीं"। जितेंद्र ठाकुर ने कहा।
विधायक जितेन्द्र ठाकुर ने फोन रख दिया था। मगर नैना के हृदय में अभी भी ढेरों सवाल थे जिसका जवाब वह विधायक महोदय से मिलकर पुछना चाहती थी। नूतन के प्रोत्साहन से एक दिन स्वयं नैना ने विधायक जी से मुलाकात का समय मांगा। विधायक जी ने उसे अपने ऑफिस आने को कहा। नूतन और नैना विधायक महोदय के ऑफिस आ गये। नूतन ने केबिन के बाहर ही बैठकर नैना को जितेंद्र जी से अकेले ही बात करने को कहा।
"एमएलए सर। लगता है आप मुझे गल़त समझ रहे है। मैं बहुत ज्यादा बक-बक करने वाली कुछ एडवांस जरूर हूं। लेकिन आप यदि मुझे बाकी की लड़कीयों की तरह टाइम पास जैसी कोई चीज समझ रहे हो तो मैं वैसी लड़की नहीं हूं।" नैना ने अपने सामने बैठे जितेंद्र से स्पष्ट शब्दों में कह दिया।
"नैना! मैंने तुम्हें सही समझा है। लगता है कि तुम मुझे गलत समझ रही हो? अगर मुझे टाइम पास ही करना होता तब मैं तुम्हारे पीछे अपना समय क्यों खराब करता? उन सबके लिए लिए तो बहुत सी लड़कीयां है।"
विधायक महोदय बोले। नैना मौन थी।
"नैना एक बात मैं आज तुम्हें साफ-साफ कह देना चाहता हूं। मुझे नहीं पता ये प्यार-व्यार का इजहार कैसे किया जाता है। इसलिए बस तुमसे इतना ही कह सकता हूं की आने वाले इलेक्शन में क्या तुम एक पत्नी के रूप में मेरा चुनाव प्रचार करना पसंद करोगी?" विधायक महोदय नैना से बोले।
"विधायक सर! मैं कोई 17-18 साल की टीनएजर्स गर्ल नहीं जो आपकी इन रोमेंटिक बातों से आपके प्यार में पागल हो जाऊंगी। आई एम 27 ईयर ओल्ड मैच्योर एण्ड इण्डीपेन्डेट गर्ल। आपको लगता होगा की अपनी प्रसिद्धी के कारण जिस भी चीज पर हाथ रखेगें वो आपकी हो जायेगी? जी नहीं सर! न हीं मुझे आपकी दौलत और शोहरत में दिलचस्पी है और न ही आपकी पत्नी बनने में। हां अगर आप मुझे वाकई में प्यार करते है तो प्रूफ करके बताईये। तब ही मैं मानूगीं और शायद तब मेरा विचार आपके प्रति सकारात्मक हो सकेगा।" नैना बोलकर जा चूंकी थी।
विधायक महोदय मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे-- 'मुझसे अपने प्यार का सबूत मांग रही है। तो अब तक जो मैं उसके मोहल्ले में जा-जाकर उसे प्रभावित करने के लिए इतना कुछ कर रहा था वह क्या था? एक वर्ष की पुरी विधायक निधि विकास नगर के विकास पर खर्च कर दी, रहवासीयों के समक्ष अपनी हंसी भी उड़ावा ली, अब ओर कैसे प्रूफ करूं की मैं तुमसे प्यार करता हूं नैना।'
नूतन ने बस में घर लौटते समय नैना को सलाह दी की वह जितेंद्र जी के प्यार को स्वीकार कर ले। ये पोलिटीशियन अन्य पोलिटीशियन से बिल्कुल अलग है। मगर नैना को अभी कुछ ओर जानना समझाना था जितेंद्र ठाकुर के विषय में। सो वह जल्दी बाजी में निर्णय लेने के पक्ष में नहीं थी।
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