बीते समय की रेखा

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राजस्थान के टोंक जिले में लड़कियों का एक विश्वविख्यात विश्वविद्यालय है। ये पिछली सदी के तीसरे दशक के बीतते- बीतते एक छोटे से विद्यालय के रूप में शुरू हुआ था। दरअसल इसके शुरू होने की भी एक मार्मिक कहानी है। देश की आज़ादी से पहले विभिन्न स्तरों पर भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद कराने के कई छोटे - बड़े प्रयास देश भर में चल रहे थे। इसी सिलसिले में राजस्थान के जोबनेर में जन्मे पंडित हीरालाल शास्त्री भी प्रजामण्डल की पताका तले एक अत्यंत सक्रिय नेता के रूप में कार्य कर रहे थे। ये ग्रामीण भारत को संगठित करने की मुहिम में घूम - घूम कर काम तो कर ही रहे थे किंतु एक स्थाई स्थल के तौर पर अपनी मुहिम को संभालने के लिए ये ग्रामीण किसानों के सहयोग के आश्वासन पर बंथली नाम के एक छोटे से गांव में अपने कुछ साथियों और परिवार के साथ रहने आ गए।

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बीते समय की रेखा - 1

1.राजस्थान के टोंक जिले में लड़कियों का एक विश्वविख्यात विश्वविद्यालय है। ये पिछली सदी के तीसरे दशक के बीतते- एक छोटे से विद्यालय के रूप में शुरू हुआ था।दरअसल इसके शुरू होने की भी एक मार्मिक कहानी है। देश की आज़ादी से पहले विभिन्न स्तरों पर भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद कराने के कई छोटे - बड़े प्रयास देश भर में चल रहे थे। इसी सिलसिले में राजस्थान के जोबनेर में जन्मे पंडित हीरालाल शास्त्री भी प्रजामण्डल की पताका तले एक अत्यंत सक्रिय नेता के रूप में कार्य कर रहे थे। ये ग्रामीण भारत को संगठित करने की मुहिम ...Read More

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बीते समय की रेखा - 2

2.विधिवत स्कूल आरम्भ हो जाने के बाद इसकी स्थापना करने वाली रतन जी को लगा कि यह प्रदेश में तरह का पहला शिक्षा केंद्र है जो केवल लड़कियों की शिक्षा के लिए शुरू किया गया है, अतः इसके लिए पाठ्यक्रम आदि भी अपनी ज़रूरतों के हिसाब से स्वयं ही तैयार किया जाए।सबसे पहले तो जीवन कुटीर के पास ही लड़कियों को रखने के लिए एक घास-फूस की छत वाला मिट्टी का अहाता तैयार किया गया। इसके साथ कुछ शिक्षकों के रहने व कार्यालय आदि के लिए भी सीमित संसाधनों से कच्चे कमरे तैयार किए गए।विद्यालय का दृष्टिकोण यह था ...Read More

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बीते समय की रेखा - 3

3.समय अपनी रफ़्तार से चला जा रहा था। उधर देश के माहौल में भी स्वतंत्रता पाने की आस तेज़ी रही थी। लोग एक नए ज़माने का स्वागत करने को आतुर थे। राजस्थान में और अन्य राज्यों में भी छितरी - बिखरी रियासतों का एकीकरण हो रहा था। शास्त्री जी की छवि भी एक बड़े नेता के तौर पर निरंतर उभर रही थी। शिक्षा के प्रति उनकी सरपरस्ती में चलने वाले इस संस्थान के कारण अपनी पार्टी और समूह में भी उनका कद खासा बढ़ रहा था।देश के बड़े - बड़े नेताओं के साथ और सहयोग से विद्यापीठ की राह ...Read More

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बीते समय की रेखा - 4

4.नारी शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विद्यापीठ की प्रसिद्धि दिनोंदिन बढ़ती गई। यहां नए नए पाठ्यक्रम गए और देश भर ही नहीं बल्कि विदेशों तक से छात्राओं का पढ़ने के लिए आना जारी रहा।पांचवें दशक के मध्य में श्रीमती रतन शास्त्री को स्त्री शिक्षा के इस अनूठे केंद्र की मौलिक अवधारणा और कुशल संचालन हेतु सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।इसी विद्यापीठ परिसर की एक प्रेरक कहानी से हम आपको परिचित कराने जा रहे हैं जो यहां की एक छात्रा के कर्मठ जीवन की दास्तान कहती है।पिछली सदी के सातवें दशक का आरंभ था। ...Read More

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बीते समय की रेखा - 5

5.मित्तल साहब के पुत्र ने यहां रहते हुए बहुत तरक्की की और अब पिता के सेवानिवृत्त हो जाने के परिसर में वो मित्तल साहब कहलाने लगे। कुछ समय बाद उनकी पत्नी को भी वहां शिक्षिका की नौकरी मिल गई।इस दंपत्ति के दो पुत्र और दो पुत्रियां थीं।इनमें सबसे बड़ी पुत्री का नाम रेखा था।इसी रेखा की कहानी हम आपको सुनाने जा रहे हैं !छोटी सी रेखा विद्यापीठ परिसर में परिवार के साथ रहते हुए प्राइमरी स्कूल में पढ़ने जाने लगी। यह कन्या बालपन से ही बेहद मेधावी थी। प्रायः देखा जाता है कि पढ़ाई में तेज़ होने वाले बच्चे ...Read More

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बीते समय की रेखा - 6

6.इन तीनों अत्यंत प्रतिभाशाली लड़कियों का जीवन मानो बदलते हुए युग के नारी - विमर्श का एक ठोस कार्यकारी था जो महिला शिक्षा के अंतिम निकष की परिणीति था।इनमें एक तमिलनाडु से आई लड़की चित्रा थी, दूसरी मुंबई में ही पली- बढ़ी कन्नड़ लड़की मीरा और तीसरी राजस्थान से आई रेखा।ये तीनों ही अपने- अपने घर की बड़ी बच्चियां थीं जो नारी आत्म निर्भरता की स्वनिर्मित मिसालें थीं। इन्हें अपने छोटे भाई - बहिनों की तमाम ज़िंदगी के छोटे - बड़े मसले घर के मुखिया अभिभावक अथवा माता- पिता की तरह सुलझाते देखा जा सकता था। कब कौन क्या ...Read More

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बीते समय की रेखा - 7

7.जैसे... किसी भी बात में बहस मत करो, लॉजिक या तर्क - शास्त्र लड़कियों के लिए नहीं है, इसके मत छिपो, सीधे कार्य को कर के दिखा दो। संशय को पूर्णता से हराओ।... पुरुषों को सफलता से तमगे भी मिलते हैं और श्रेय भी। हमें केवल आत्मसंतोष। उसी के लिए काम करो।... हमारा वेतन, ईनाम या पारिश्रमिक लड़कों से कम है। कार्य या लक्ष्य की क्वालिटी ऐसी रखो कि तुम्हें श्रेय न देने की उनकी इच्छा कम होकर ढेर हो जाए।... हिम्मत रखो, एक दिन ब्यूटी पार्लर मर्दों के भी बनेंगे।लेकिन समय - समय पर यह सब कहते हुए ...Read More

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बीते समय की रेखा - 8

8.क्या आपने किसी कहानी को फटते हुए देखा है? दरारें पड़ जाती हैं।हमारी ये कहानी भी फट गई। एक दो - दो दरारें पड़ गईं इसमें।बेहतर होगा कि आपको इसके टूटे हुए सभी हिस्से दिखा दिए जाएं ताकि आपको पूरी कहानी मिल सके -मुकम्मल!!ये बात तब की है जब रेखा की शादी हुई।आम तौर पर भारतीय समाज में शादी का मतलब होता है कि एक लड़के और एक लड़की का एकाकी जीवन पूरा हुआ, अब वो साथ में रहेंगे और अपनी आने वाली संतति के लिए जीवन की सुविधाएं जुटाते हुए अपनी ज़िंदगी पूरी करेंगे।लेकिन ये रेखा की शादी ...Read More

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बीते समय की रेखा - 9

9.विश्वविद्यालय का दर्ज़ा मिल जाने के बाद बनस्थली में और भी कई नए - नए विभागों के खुलने का साफ हो गया था। कंप्यूटर साइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रबंधन, एविएशन आदि की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए पारंपरिक पाठ्यक्रमों, जैसे - कला, गृहविज्ञान, ह्यूमैनिटीज, आदि में छात्राओं का रुझान धीरे- धीरे कम होने लगा। इनमें विद्यार्थियों की संख्या भी घटने लगी। यह एक प्रकार से विश्वव्यापी ट्रेंड ही था क्योंकि महिला शिक्षा के क्षेत्र में अब बुनियादी परिवर्तन हो रहे थे। अब महिलाएं शिक्षित होने या पढ़लिख कर मात्र घर संभालने की जगह रोज़गार की ओर भी उत्साह से देख ...Read More

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बीते समय की रेखा - 10

10."कहा जाता है कि कोई भी बच्चा अपने जीवन के पहले पांच से दस साल तक जो कुछ देखता, या पाता है वही आगे की ज़िंदगी के लिए उसके संस्कार बन जाते हैं। उन्हें बदलना फ़िर किसी और के लिए तो क्या, ख़ुद उसके अपने लिए भी कठिन हो जाता है।"जब रेखा के दादाजी का परिवार बनस्थली में रहने आया तो उसके पिता और माता के साथ दो बुआ भी साथ में थीं। उनकी शादी तब तक नहीं हुई थी। इसी तरह दादाजी की मां (रेखा की परदादी ) भी तब जीवित थीं। इस तरह देखा जाए तो एक ...Read More

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बीते समय की रेखा - 11

11.फ़िल्मों को यूं तो मनोरंजन का साधन कहा जाता है और लोग दिल बहलाने के लिए ही फ़िल्म देखने भी हैं लेकिन रेखा के जीवन को एक फ़िल्म ने ही अलग दिशा में मोड़ दिया।रेखा ने यह फ़िल्म अपने उसी मित्र के साथ देखी थी जिसके साथ बाद में उसका विवाह भी हुआ। ज़ाहिर है कि तब रेखा विश्वविद्यालय में पढ़ रही थी।फ़िल्म गुलज़ार की थी, नाम था "आंधी"। फ़िल्म की कहानी संक्षेप में कुछ इस तरह थी - नायिका सुचित्रा सेन अपने करियर को लेकर बेहद गंभीर और संजीदा है। उसका प्रेमी संजीव कुमार एक सीधा - सादा ...Read More

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बीते समय की रेखा - 12

12. कुछ अच्छे और नामचीन शैक्षणिक संस्थानों की आंतरिक संरचना में एक ख़ास बात रहती है जो हमें जाननी ये बात अलग है कि सतही तौर पर देख कर इसी खासियत को कहीं- कहीं एकपक्षीयता भी कह दिया जाता है। ये महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां ऊपर से नीचे तक चयन मानदंडों में एक सुरक्षित लॉयल्टी को प्राथमिकता दी जाती है। रेखा को आरम्भ से ही इस संस्थान की ही छात्रा होने के कारण कुछ अतिरिक्त सद्भाव - सहयोग मिला। यह केवल अतिरिक्त था, बाकी अपनी नैसर्गिक योग्यताएं तो अपनी जगह थीं ही। लिहाज़ा अपनी अगली पदोन्नतियों में ...Read More

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बीते समय की रेखा - 13

13. दीमक और खाद की कहानी तो आपने सुनी ही होगी। दोनों ही पेड़ों में लगते हैं। किंतु दीमक पेड़ से रस चूस कर उसे भीतर से खोखला बना देती है वहीं खाद अपना सत्व पेड़ और मिट्टी को देकर उसे और भी हरा - भरा बनाती है। पल्लवित करती है। रेखा के व्यक्तित्व का यही बोध वाक्य था। खाद बनो, दीमक नहीं। दीमक बनने पर हर कोई तुम्हें हटाना चाहेगा, खाद बनने पर हर कोई समेट कर तुम्हें पेड़ के पास रखेगा। जब तेज़ हवा चलती है तो दीमक पेड़ से और चिपक जाता है कि कहीं दूर ...Read More

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बीते समय की रेखा - 14

14. अजीब सी स्थिति थी। रेखा को समझ में नहीं आता था कि ये कैसे दिन हैं? क्या उसका और भारी हो गया है या कोई हल्कापन बादल की तरह तैरता हुआ उसके इर्द - गिर्द मंडराने लगा है। उसे लगता था कि घर- परिवार के लोग क्या इसी तरह एक - एक करके दूर होते चले जाएंगे? रेखा की बेटी की शादी भी तय हो गई थी। एक राज्य में रहती थी रेखा, दूसरे राज्य में था उसका पीछे छूट चुका घर, तीसरे राज्य में थी बेटी की नौकरी और चौथे राज्य में था उसका ससुराल। उसे अक्सर ...Read More

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बीते समय की रेखा - 15

15. लगातार काम में लगी रेखा के लिए हॉस्टल मेस से खाना भी रात को आठ बजे उसके चैंबर ही आ गया। अपने लैपटॉप को बंद करके रेखा खाने की सुध लेने की सोच ही रही थी कि तभी एक फ़ोन आ गया। इस बार फ़ोन विश्वविद्यालय भोजनालय के प्रबंधक का था। रूटीन का समय होता तो यह फ़ोन वाइस चांसलर की पीए को ही उठाना था। परन्तु मानवीय आधार पर यहां यह रेखा की ही एक सहृदयता सिद्ध हुई कि पीए सीट पर नहीं थी। शाम इतनी देर हो चुकी थी कि यूनिवर्सिटी से काफ़ी दूर रहने वाली ...Read More