अबीर… नाम जितना सीधा, स्वभाव उतना ही उल्टा। उसे ना कल की चिंता थी, ना आज की कद्र। जिंदगी उसके लिए एक खुला मैदान थी जिसमें उसे बस आज़ादी से दौड़ते जाना था। बिना किसी मंज़िल के। हर सुबह की शुरुआत उसके बेपरवाह ठहाकों से होती और हर शाम मि. अभिमन्यु की नाराज़गी से खत्म। वे बार-बार समझाते, टोकते, राह दिखाने की कोशिश करते, लेकिन अबीर तो जैसे हवा था, जिसे कोई बांध नहीं सकता।
रुह... - भाग 1
१.अबीर… नाम जितना सीधा, स्वभाव उतना ही उल्टा। उसे ना कल की चिंता थी, ना आज की कद्र। जिंदगी लिए एक खुला मैदान थी जिसमें उसे बस आज़ादी से दौड़ते जाना था। बिना किसी मंज़िल के। हर सुबह की शुरुआत उसके बेपरवाह ठहाकों से होती और हर शाम मि. अभिमन्यु की नाराज़गी से खत्म। वे बार-बार समझाते, टोकते, राह दिखाने की कोशिश करते, लेकिन अबीर तो जैसे हवा था, जिसे कोई बांध नहीं सकता।उधर एक दूसरा संसार था... पायल का।पायल… एक ...Read More
रुह... - भाग 2
२.ड्रॉइंग रूम की खामोशी अचानक मि. अभिमन्यु की कड़कती आवाज़ से टूटी।"अबीर!"उनकी आवाज़ इस बार बेहद सख्त थी, जैसे से दबे हुए शब्द एक झटके में बाहर निकल आए हों।"तुम कब तक इस तरह बेफिक्री से घूमते रहोगे? ज़िन्दगी कोई मजाक नहीं है, अब वक्त आ गया है जिम्मेदारियां उठाने का। कल से तुम मेरे साथ ऑफिस आओगे, और काम सीखोगे। अब मुझे तुम्हारा कोई बहाना नहीं सुनना!"अबीर को जैसे किसी ने ठिठका दिया हो।वह कुछ क्षणों तक चुप खड़ा रहा, ...Read More