गरीबी सिर्फ जेब में नहीं होती, यह इंसान के दिल और दिमाग पर भी असर डालती है। शिवम ने बचपन से ही इस सच्चाई को बहुत करीब से देखा था। उसका जन्म एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था, जहाँ हर दिन संघर्षों से भरा रहता। उसके पिता, मनोहर भाई, एक छोटी-सी लोहे की दुकान चलाते थे, और माँ, सविता बेन, घर संभालने के साथ-साथ सिलाई का काम भी करती थीं ताकि कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सके। लेकिन फिर भी, महीने के आखिरी दिनों में घर का खर्चा चलाना किसी जंग से कम नहीं होता।
इश्क और इरादे - 1
गरीबी सिर्फ जेब में नहीं होती, यह इंसान के दिल और दिमाग पर भी असर डालती है। शिवम ने से ही इस सच्चाई को बहुत करीब से देखा था। उसका जन्म एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था, जहाँ हर दिन संघर्षों से भरा रहता। उसके पिता, मनोहर भाई, एक छोटी-सी लोहे की दुकान चलाते थे, और माँ, सविता बेन, घर संभालने के साथ-साथ सिलाई का काम भी करती थीं ताकि कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सके। लेकिन फिर भी, महीने के आखिरी दिनों में घर का खर्चा चलाना किसी जंग से कम नहीं होता।घर में पैसों की किल्लत कोई ...Read More
इश्क और इरादे - 2
सुबह की हल्की धूप खिड़की से अंदर झाँक रही थी, लेकिन शिवम की आँखें मोबाइल स्क्रीन पर टिकी थीं। स्कॉलरशिप के परिणाम घोषित होने वाले थे। उसके दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी। उसके लिए यह सिर्फ एक परीक्षा का परिणाम नहीं था, बल्कि उसके और उसके परिवार के भविष्य का फैसला था।घर में भी एक अलग-सा माहौल था। माँ, जो हर रोज़ सुबह जल्दी उठकर चाय बना देती थीं, आज बार-बार शिवम के पास आकर पूछ रही थीं, "बेटा, रिजल्ट आया क्या?"शिवम सिर हिलाकर फिर से फोन की स्क्रीन पर देखने लगा। पिता, मनोहर भाई, चुपचाप अख़बार ...Read More
इश्क और इरादे - 3
सुबह की हल्की गुलाबी धूप खिड़की के शीशे से छनकर शिवम के कमरे में फैली हुई थी। दीवार पर घड़ी की सूई जैसे धीमे-धीमे उसके दिल की धड़कनों के साथ दौड़ रही थी। आज उसका पहला दिन था—शहर के उस प्रतिष्ठित कॉलेज में, जहाँ तक पहुँचने का सपना उसने न जाने कितनी रातों तक देखा था।सविता बेन ने चुपचाप दरवाज़े पर आकर देखा—शिवम आइने के सामने खड़ा, अपने हल्के से काले बाल सँवार रहा था, और माथे पर हल्की शिकन थी। माँ ने प्यार से उसकी कमीज़ पर हाथ फेरा, “टिफिन रख दिया है बैग में। बस समय पर ...Read More
इश्क और इरादे - 4
कॉलेज में तीसरा दिन था।शिवम अब धीरे-धीरे इस नए माहौल से घुलमिल रहा था। हर सुबह वह सबसे पहले को देखने की कोशिश करता—कभी लाइब्रेरी के गलियारे में, कभी कैंटीन की कतार में, और कभी-कभी क्लासरूम के कोने से चुपचाप उसकी ओर देखता हुआ।प्राची का आत्मविश्वास उसे हैरान करता था। वो तेज़ चलती थी, तेज़ बोलती थी, लेकिन दिल से बिल्कुल साफ़ थी। हर विषय में उसकी पकड़ मज़बूत थी, और उसका नाम अब कॉलेज की चर्चाओं में आने लगा था—लेकिन सिर्फ पढ़ाई की वजह से, किसी दिखावे की वजह से नहीं।एक दिन ब्रेक टाइम में, क्लास के बाहर ...Read More
इश्क और इरादे - 5
कॉलेज का ऑडिटोरियम हल्की-सी चहलकदमी और हलके संगीत से गूंज रहा था। दीवारों पर चिपके पोस्टर और रंगीन लाइट्स उत्सव-सा माहौल रच रहे थे। आज इंटर-कॉलेज पोएट्री कॉम्पिटिशन था—वो मंच जहाँ शब्दों से जज़्बातों का खेल खेला जाना था।शिवम ग्रीन रूम में बैठा था, हाथ में अपनी डायरी पकड़े हुए। पन्नों पर कई बार पढ़ी गई पंक्तियाँ अब भी उसे अधूरी लग रही थीं। पसीने से भीगते हाथ, दिल की धड़कनों की रफ़्तार, और बाहर से आती तालियों की गूंज—सब उसे उसकी पहली बार का एहसास दिला रहे थे।"शिवम!" प्राची ग्रीन रूम में दाखिल हुई, हाथ में एक पानी ...Read More