कुछ हटकर जो हो रहा साहब, हम उसके बारे कहने का दूसहास किया है, इस के लिए कुछ भी घटिकत हो जाए। होने दो। भूमिका सोचते हो पता चल गयी हरगिज नहीं।कहने का तातपर्य कुछ ये है। बम्बे जाना ही होगा। " मेहरा साहब वही रहते है " उनका मित्र फिरोज बोला था। सोच रहा था फुरसत के वो दिन, जो शिमले मे उनके साथ गुजारें थे उनके रेहन बसेरे मे, वो शांत माहौल, पहाड़ी वादियों मे गिरते झरने का पानी, कन.. छन.. करता गिरता कितना मन को शांति देता था।
बीते न रैना भाग - 1
--------------------- बीते न रैना ---------------- भूमिका कुछ हटकर जो हो रहा साहब, हम उसके बारे कहने दूसहास किया है, इस के लिए कुछ भी घटिकत हो जाए। होने दो। भूमिका सोचते हो पता चल गयी हरगिज नहीं।कहने का तातपर्य कुछ ये है। बम्बे जाना ही होगा। " मेहरा साहब वही रहते है " उनका मित्र फिरोज बोला था। सोच रहा था फुरसत के वो दिन, जो शिमले मे उनके साथ गुजारें थे उनके रेहन बसेरे मे, वो शांत माहौल, पहाड़ी वादियों मे गिरते झरने का पानी, कन.. छन.. करता गिरता कितना मन को शांति देता था। ...Read More
बीते न रैना भाग - 2
" बीते न रैना " (2)जीप का सफर भी कितना वाला था, ये फिरोज को ही पता था.... मेहरा साहब तो अलबेले व्यक्ति थे।साय काल हो गया था... सूर्य अस्त पहाड़ो की चोटियों के पीछे इतना सुन्दर दृश्य.... जैसे कोई चित्रकार केन्वेंस पे उतार ले। टरू टरू की गति किर्या शुरू हो चुकी थी... शत शत शांत वातावरण मे सर्द हवा का झोका कभी कभी आ जाता था। जीप रहन बसेरा मे लगाने के पश्चात मेहरा साहब ने पूछा, " ये सेबो ...Read More
बीते न रैना भाग - 3
------(3)------ वो सब मदन जानता था। कि बहुत कुछ सहना जिंदगी है, सहने मे जो सब्र मिलता है, सकून मिलता है.. वो शायद कभी न मिल सके। जो वक़्त के हिसाब से नहीं चलता, वो करारी हार खा जाता है.... " साहब, सेबो की पुताई मे बस एक हफ्ता रह गया है...." माली काका ने कहा!!!" हां खूब, ट्रक लोड कराते वक़्त याद रखना, काका, पर्ची की गलती आगे की तरा मत करना। " माली काका ...Read More
बीते न रैना भाग - 4
( बीते न रैना ) कर्नल की कार फिरोज को स्टेशन पे गयी थी। और गले से मिला था... फिरोज दोनों को.. होश कम था दोनों को... फिरोज को ठंड कम इसलिए कम लग रही थी, कि उसे विस्की का असर और मुँह मे इलायची थी छोटी हरी... जिससे सास गर्म लावा जैसे और बदबू कम थी। दिल्ली की टिकट लीं, टिकट काउटर से, एक लड़की घुटनो तक लम्मा कोट डाला हुआ बहस रही थी उच्ची से, बात को समझा... फिरोज ने। ...Read More
बीते न रैना भाग - 5
बीते ना रैना.. (5) एक रुके पे कुछ लिखा ऊपर से गिरा.... लिपस्टिक से लिखा था " तुम से बात करनी है, एसटीडी नम्बर दे दिया"... उसको कुछ अजीब तो नहीं... पर परेशान सा हो कर खड़ा हो गया.. और बोला, " कया नाम है तुम्हारा, कहा रहती हो... "वो मुस्कराहट भरे लहजे मे बोली, " मेरा घर शिमला और चाचा के लडके की शादी पे ज़ा ...Read More
बीते न रैना भाग - 6
( बीते न रैना ) उपन्यास की छेवी किश्त चल रही है, सकून था, पहले जो समय थे, शहर तब भी सोता नहीं था, आज तो बिलकुल नहीं सोता है... पैसे के लेन देन ने बस आदमी की मत मार डाली है, हर किसी को बस पैसा चाहिए... वो भी बिना मेहनत का। फिरोज के चेहरे पर सलवटे उबर आयी। आखिर चाहते कया थे, जिनकी वो गिरफ्त मे था। आज वो कहा ...Read More