Hindi Quote in Poem by NR Omprakash Saini

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मैं...
यह तीन अक्षरों का शब्द नहीं,
एक पूर्ण ब्रह्मांड है —
जिसमें घमंड की धूल भी है,
और ज्ञान का अमृत भी।

मैं वह पहला स्वर हूँ
जो किसी ने बोला, “मैं हूँ!”
और उसी क्षण जन्मा
वियोग, द्वेष, अधिकार और सीमा का संसार।

क्योंकि जब “मैं” आया,
तो “तू” पीछे छूट गया।
वहीं से प्रारंभ हुआ
सबसे बड़ा युद्ध —
मनुष्य बनाम मनुष्य।

मैं ने कहा —
“यह मेरा है!”
और धरती काँप उठी।
पहाड़, नदियाँ, हवाएँ सब
बंधन में बंध गए।
मैं ने कहा — “यह तेरा नहीं!”
और आकाश भी तंग लगने लगा।

मैं ने रिश्तों को भी
संपत्ति की तरह बाँटा,
हर अपनापन में स्वार्थ मिलाया।
मित्रता के प्याले में जहर घोला,
प्रेम में भी स्वामित्व बोया।

मैं —
जो सबसे ऊँचा दिखना चाहता है,
पर खुद अपनी छाया से हार जाता है।
जिसे सम्मान चाहिए,
पर विनम्रता नहीं आती।
जो सबको झुका देखना चाहता है,
पर खुद झुकने से डरता है।

मैं ही वह अंधा राजा हूँ
जो अपने ही सिंहासन का कैदी है,
जिसे लगता है वह जीत गया—
पर हार चुका होता है अपने भीतर से।

मैं ने साम्राज्य रचे, मंदिर गढ़े,
किताबें लिखीं, युद्ध लड़े।
मैं ने कहा — “मैं ईश्वर हूँ।”
और यहीं से पतन आरंभ हुआ।
क्योंकि जिस दिन “मैं” ईश्वर हुआ,
उसी दिन ईश्वर मानव से चला गया।

मैं ने सत्य को भी अपनी माप में तौला,
धर्म को भी हथियार बना डाला।
मगर मृत्यु मुस्कराई —
धीमे से बोली, “ठहर,
अब मैं आ रही हूँ।”

जब देह राख बनी,
और अहंकार धुएँ में घुला,
तब जाना —
जो “मैं” समझा था, वह केवल भ्रम था।
वह “मैं” जो दिखता था,
मर गया।
पर जो नहीं दिखता था,
वह अमर हो गया।

सच्चा “मैं” तो वह है —
जो मौन में भी बोलता है,
जो किसी को नीचा नहीं देखता,
जो जानता है —
“मैं और तू अलग नहीं।”

वह “मैं” अहंकार नहीं,
वह आत्मा का प्रतिध्वनि है,
जो कहती है —

“मैं वही हूँ जो सबमें है,
और सब मुझमें हैं।”

इसलिए,
हे मानव —
जब तू “मैं” कहे,
तो भीतर झाँक कर देख,
कौन बोल रहा है —
अहंकार या आत्मा?

क्योंकि अंत में,
मृत्यु आकर सब “मैं” मिटा देती है,
और जो शेष रह जाता है —
वही सत्य है,
वही शांति है,
वही अनंत “मैं” है।

Hindi Poem by NR Omprakash Saini : 112004299
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