अंतिम यात्रा
था मैं नींद में और मुझे इतना सजाया जा रहा था ,
बड़े प्यार से मुझे नहलाया जा रहा था...
काँप उठी मेरी रूह वो मंज़र देख कर ,
जहाँ मुझे हमेशा के लिए सुलाया जा रहा था...
ना जाने था वो कौन सा अजब खेल मेरे घर में ,
बच्चो की तरह मुझे कंधे पर उठाया जा रहा था...
जो कभी देखते भी न थे मोहब्बत की निगाहों से ,
उनके दिल से भी प्यार मुझ पर लुटाया जा रहा था...
रहा था मोहब्बत की इन्तहा थी जिन दिलों में मेरे लिए ,
उन्हीं दिलों के हाथों आज मैं जलाया जा...
मालूम नहीं क्यों हैरान था हर कोई मुझे सोते देख कर ,
जोर जोर से रोकर मुझे जगाया जा...- रहा था...
था पास मेरा हर अपना उस वक़्त ,
फिर भी मैं हर किसी के मन से भुलाया जा रहा था...
इस दुनिया मे कोई किसी का हमदर्द नहीं होता ,
लाश को शमशान में रखकर अपने लोग ही पुछते हैं और कितना वक़्त लगेगा...
-"समय"
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