कौन याद रखेगा तुझे,
क्या ऐसा है तुझमें…
कभी-कभी ये दिल ही पूछे,
तू क्या है अपनी पहचान में…
खामोशी के अंदर से,
एक स्वर धीरे-धीरे कहे…
तेरा ही मैं साया हूँ,
हर मोड़ पे साथ रहूँ मैं…
जवाब सभी मेरे भीतर ही हैं,
मेरी पहचान का उजाला भीतर ही है…
तू बाहर ढूँढे लाखों रस्ते,
पर सच का दरवाज़ा भीतर ही है…
जब अँधेरा पास यहाँ आए,
और मन थोड़ा-सा डर जाए…
तेरे भीतर का दीपक ही,
हर रात को रोशन हो जाए…
जवाब सभी मेरे भीतर ही हैं,
मेरी पहचान का उजाला भीतर ही है…
दुनिया चाहे समझे या नहीं,
पर तेरी आँखें सच्चा बोले हैं…
तेरा मन ही साथी है,
तेरा अंतर ही दीया है…
बाहर नहीं, भीतर ही—
तेरा सच बस जीता है…
I translate my Gujarati poem in Hindi for Hindi version