"पिता"
ऊपरवाले ने कहेकर भेजा जाओ तुम,
घर चलाओ और सबको संभालो....
लेकिन ये नहीं बताया की थोड़ी देर सांस लेलो और,
जरा खुद की भी परवाह करलो....
ऊँगली पकड़ कर चल ना सिखाया था मुझे
हर वक्त आगे बढ़ना सिखाया था,
मेरे हर कदम पर मेरे साथ थे
मेरे हर नए काम में मेरे पास थे..और होंगे भी
आखिर बेटी जो थी उनकी
हा हा परी नहीं हूँ और मुझे कहलवाना भी नहीं हैं
वैसे भी परिया कहानी में होती है
में तो हकीकत हूँ.... उनकी बेटी
वैसे परीओ वाला कोई काम नहीं किया है मैंने
पर उनकी लाडली हूँ
कभी माँ की डांट से तो कभी भाई की डांट से
बचाते जो है मुझे
उनका स्वभाव अरे उसकी क्या बात करु में
साठ के होकर हरकते सौलह की है
हर बात में मजाक पूरा दिन हँसाना
वैसे ये उनकी हर परेशानी कम करने की तरकीब है
क्योंकि वह हमें परेशान नहीं देख सकते है
कहानियो में और कविता में कहेते हे पिता
अपने बच्चो के लिए सबकुछ कर सकते है
हर दर्द सेह सकते हैं
इस बात की सच्चाई मेरे पापा है
वैसे सबके पापा बहोत अच्छे होते हैं
लेकिन मेरे उन सबसे अच्छे हैं.....
ये कविता मेरी बहोत सादी है
इसमें कुछ गहेरे अल्फ़ाज़ नहीं है
और मुझे लिखने भी नहीं है
क्योंकि ये कविता मेरे पापा जैसी है
एकदम सुलझी हुई और प्यारी सी....❤