वाराणसी
सालों से दौड़ते हुए मन को आज एक ठहराव चाहिए
इमारतों की इस भीड़ में इंसान को एक गांव चाहिए
सुना है यहां कण कण में शिव बस्ते हैं
उन्हे पाने को सभी तरसते है
मेरी भी चाह काफी है
तुम्हारी होगी चाह ये ख़ुश-म'आशी
मेरी तो मौत की चाह ही काशी है
ख़ुश-म'आशी ( अच्छी कमाई से जीवन बिताना )