एक समाज
तू औरत है ,शर्म कर
देश आजाद है तू नहीं
तू औरत है ,शर्म कर
तुझे बेड़ियों में बंदे रहना है
आसमान में उड़ने के सपने संजोना नहीं
तू औरत है ,शर्म कर
तू घर के भीतर के गणित को समझ
बाहर के गणित के हिसाब में पढ़ने की जरूरत नहीं
तू औरत है ,शर्म कर
तू हर युग में अबला सी, डरी हुई सी है
अभी भी चुपचाप डरी हुई सी रह
तू औरत है ,शर्म कर
आजादी के बाद देश बदला है
तेरी मर्यादा नहीं ।
एक स्त्री
क्या हुआ ?
अगर मैं एक औरत हूं
इस देश की आजादी के सपने मैंने भी देखे हैं
इसलिए पहले मैं फिर मेरा देश आजाद है
क्या हुआ ?
अगर मैं एक औरत हूं
इन बेड़ियों में मैं ने हैवानियत का गला रौंदा है
और खुद को सशक्त बनाया है
क्या हुआ ?
अगर मैं एक औरत हूं
मालूम है मुझे घर के खर्च से लेकर
देश के गणित का हिसाब
क्या हुआ ?
अगर मैं एक औरत हूं
युग युग से में डरी हुई अबला नहीं
दानवों का विनाश करने वाली काली हूं ।
क्या हुआ ?
अगर मैं एक औरत हूं
आज देश भी आजाद है
और कहीं ना कहीं मैं भी....... आजाद होने को बैठी हूं
- सुहानी बिष्ट