एक रोटी के टुकड़े पर हारी हारी सी वो लड़की
भूख प्यास से व्याकुल हो बेचारी सी वो लड़की
लाचारी में वो काम किया जो उसे नही करना था
औरत का बटुआ छीनी मति मारी सी वो लड़की
रूठा था ईश्वर उससे रूठ गयी थी किस्मत भी
दर दर की ठोकर खाती जग हारी सी वो लड़की
जग ने उसका सब छीना वो जग से क्या माँगे
लगती जैसे लावारिस दुखियारी सी वो लड़की
हिम्मत करती जीने की मन में ज्योति जलाती है
आत्महत्या पर पड़ती भारी भारी सी वो लड़की
ज्योति प्रकाश राय