दौर
अजीबसा है ये दौर .....
काफ़ी कुछ बदला सा है यह दौर ....
पहले ज़िंदगी भागतीं थी ....
अब इंसान भागते हैं ।
पहले छोटीसी बात बड़ी ख़ुशी दे जाती .....
अब ख़ुशी भी छोटी लगतीं है।
पहले एक फोन के आने की राह देखी जाती थी ....
अब जब एक दूसरे को देख सखते है ... तो भी राह देखनी पड़ती है....
सुना है..... इतिहास फिर दोहरता है ....
और
कुछ दौर खुद में ही इतिहास रच देते है .....
दौर बदले ...
रिश्तों के रूप भी बदले....
बदला नहीं वो है इंसान ...
ना ही सोच , ना ही फ़ितरत ..।।
Poetry by • Jill शाह •