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प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर,प्रभु को नियम बदलते देखा .
अपना मान भले टल जाए ,भक्त का मान न टालते देखा ..
जिनकी केवल कृपादृष्टि से , सकल विश्व को पलते देखा .
उसको गोकुल में माखन पर , सौ-सौ बार मचलते देखा ..
जिसके चरण कमल कमला के,करतल से न निकलते देखा .
उसको ब्रज की कुंज गलिन मे, कंटक पथ पर चलते देखा ..
जिसका ध्यान विरंचि शंभु, सनकादिक से न सम्भलते देखा.
उसको ग्वाल सखा मंडल में , लेकर गेंद उछलते देखा ..
जिसकी वक्र भृकुटि के डर से, सागर सप्त उछलते देखा .
उसकी माँ यशोदा के डर से . अश्रु बिदुं दृग ढलते देखा..
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...जय .'.श्री.'. राधेकृष्णा ..
राधे-राधे