काश मैं तेरी जान-ए-जिगर हो जाऊँ,
तेरी हर ग़ज़ल मैं हिस्सेदार हो जाऊँ।
बनकर तेरे एहसासों की अल्फ़ाज़,
तेरे कलम की मैं हर शेर हो जाऊँ।
कुबूल कर अगर मेरी मोहब्बत को,
तो मैं पत्थर से कोहिनूर हो जाऊँ।
इश्क़ शामिल करूँ जो मैं तेरी रूह में,
तेरी साँसे,धड़कन,तेरा शरीर हो जाऊँ।
तुम गुनगुनाओ प्रज्ञा के लिए प्रेमगीत,
तो मैं तुम्हारे प्रेमगीत के स्वर हो जाऊँ।