***तङपाती यादें***
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***विधा - गद्यात्मक काव्य ***
सिर्फ मन का 'स्पर्श' था हमारे दरमियाँ
निश्छल पावन प्रणय से बना था पवित्र रिश्ता हमारा
ज़माने की नज़र लग गयी शायद
या
रब को कुछ और ही मंज़ूर था
और फिर हम यूँ बिछङे कि फिर कभी न मिल सके ।
पूछते थे लोग तुम्हारे बारे में तब कह न पाती कुछ ,
बस आँखे नम हो जाती और लोग मेरी हालत पर तरस खाते
हर जगह ढूँढा तुम्हें , मगर
परछाई तक नही मिली तुम्हारी ।
गर कहते मैं रूठ गया ,
मना लेती तुम्हें ।
कभी नही जाने देती ।
रो रो कर रोक लेती ।
मगर तुम तो बिन कुछ कहे चले गए ।
ऐसी भी क्या नाराज़गी थी ।
पूछा करती हूँ कभी कभी खुद से ही ।
सोचा करती हूँ क्या मैने कोई ऐसी ख़ता की थी
जिसने तुम्हें जाने को मजबूर किया ?
तुम क्या जानो कितना तङपाती हैं यादें तुम्हारी ,
और वो लम्हें जो हमने साथ में बिताये थे ...
क्लास से आते हुए बारिश में साथ भीगना ,
एक दूसरे की नाक खींचना , महीने की हर सात तारीख़ को तुम्हारा मुझे बर्थडे विश करना ,
मेरे ट्रेन में सफर के वक्त यह बताना कि मैने अब कौन सा स्टेशन पार कर लिया है ,
तुम्हारे कंधे पर सिर टिकाना ,
माँ से मेरी शिकायत लगाना ,
झगङने के बाद मेरी गलतियाँ गिनाना ,
मुझे डाँटकर मैथ्स और पाॅलिटी समझाना ,
अच्छे कामों के लिए प्रोत्साहित करना...
साथ तुम्हारे महफूज़ महसूस करती थी ।
मार्गदर्शक भी थे तुम मेरे , घरवालों से ज़्यादा तुम्हारे फैसले से संतुष्ट होती थी ।
जिस बात के लिए मेरे घरवाले राजी नही करवा पाते ,
वो बात तुम यूँ मनवा लेते थे ...
महारथ हासिल थी तुम्हें तो इसमें
जाने कहाँ खो गए तुम ... कहते हैं मेरे दोस्त नही आओगे तुम वापस कभी ,
मगर मुझे इंंतज़ार है अब भी तुम्हारा ।
इस उम्मीद के सहारे जी रही हूँ , कि
शायद कभी कहीं किसी मोङ पर मिल जायें हम
और आलिंगन कर ,
कह दूँ कि कितनी तकलीफ हुई बिछङन से ,
कितना याद आये तुम , कितनी बातें सही ज़माने की...
कह दूँ कि तुम्हारे बाद कोई नही भाया दिल को ...
कह दूँ तुम्हारी निगाहों की छुअन मात्र से मचल जाती ...
कह दूँ सिर्फ तुम्हारे लिए जी रही हूँ , तुम्हारे इंतज़ार में
कह दूँ अब मत जाना कहीं ... कभी भी नही ।
- अनिशा यादव