"दिल की हैसियत"
वे लोग
जो आइनों के सामने अपने कपड़े दुरुस्त करते हैं,
कभी किसी भूखे बच्चे की आँखों में
अपनी शक्ल नहीं देखी उन्होंने।
वे जो कहते हैं-
"हमारी औकात बड़ी है”,
उन्हें मालूम नहीं,
औकात तो उस वक्त उतर जाती है
जब सामने वाला "इंसान" बोल उठता है-
"भाई, ज़रा सुनिए…"
दिलों पर राज,
मुकुट से नहीं होता,
एक सादा-सा सलाम
कभी-कभी ताज से ज़्यादा चमकता है।
मैंने देखा है-
फटे कुर्ते वाला आदमी
रात में रोटी बाँटता हुआ,
और वह भी हँसता हुआ
मानो ईश्वर उसी के अधीन हो!
तो जनाब,
हैसियत दिखाने से कुछ नहीं होता,
क्योंकि जो दिल से बड़ा होता है,
वह खुद ही "राज"बन जाता है।
आर्यमौलिक