"हमारा साथ”
हमें साथ मिलकर हालातों से लड़ना था,
तुम तो हालात देखकर मुझसे ही लड़ गए।
जो आँधियाँ साथ झेलनी थीं हमने,
उनमें तुमने मुझ पर दरवाज़े ही बंद कर दिए।मैंने तुम्हारे लिए सपनों की चादर बिछाई,
तुमने उस पर शक़ के काँटे सजा दिए।
मैंने समझ का दीप जलाया हर रात,
तुमने सवालों की आंधी में उसे बुझा दिए।कंधे से कंधा मिलाना चाहा था मैंने,
तुमने कंधा झटककर एक दीवार खड़ी कर दी।
जहाँ हम थे “हम”, वहाँ अब “मैं” और “तुम” हैं,
बस यादें हैं — जो वक़्त ने स्याही में भरी कर दीं।कभी लौटो तो देखना — मैं अब भी वही हूँ,
फर्क़ बस इतना है कि अब रोता नहीं हूँ।
जो टूटा था, वो जुड़ गया है ख़ामोशी में,
पर भीतर अब भी वही तूफ़ान पल रहा कहीं हूँ।
आर्यमौलिक