रूप है, वैभव है, जीवन में कोई कमी नहीं,
पर मन की जिद ने दी एक अनसुनी सज़ा कहीं।
जो झुकना जान ले, वही पा ले प्रेम का सार,
बाकी सब रह जाते हैं, अपने ही अहंकार में लाचार।
धन हो या रूप, सब क्षणिक भ्रम का खेल,
जिद के दर्प में ढके रह जाते हैं स्नेह के मेल।
जिसने खुद से युद्ध किया, वही पाया संतोष का द्वार,
बाकी बस गिनते रह गए अपने एकाकी संसार।
आर्यमौलिक