**जब तुम गुम हो जाओ...**
जब तुम गुम हो जाओ
तो बाहर मत ढूंढना खुद को,
भीड़ में जो मिलते हैं
वे सब अधूरे होते हैं।
थोड़ा ठहरो,
अंधेरों को आँखों में उतरने दो,
फिर देखो—
उन्हीं सन्नाटों में
एक हल्की-सी रौशनी धड़कती मिलेगी।
वो रौशनी तुम हो,
जो दुख से भी जन्म लेती है,
जो टूटकर सँवरती है,
और हर बार थोड़ा नया बन जाती है।
एक दिन दुखना भी थम जाएगा,
जब तुम खुद में खुद को पाओगे,
और समझोगे—
गुम हो जाना,
दरअसल खुद तक पहुँचने का रास्ता था।
आर्यमौलिक