धार्मिक गुरु बनाम आध्यात्मिक गुरु — हीरे और अमेरिकन डायमंड का धर्म ✧
धार्मिक गुरु चमक बेचते हैं, आध्यात्मिक गुरु मौन बाँटते हैं।
चमक बाज़ार में टिकती है, मौन इतिहास में।
धार्मिक गुरु का संसार शोर से बनता है — मंच, माइक, माला, मीडिया।
आध्यात्मिक गुरु का संसार मौन से बनता है — एकांत, सन्नाटा, साक्षात्कार।
धार्मिक गुरु “अनुयायी” चाहता है,
आध्यात्मिक गुरु “अनुभव” चाहता है।
पहला चाहता है भीड़ बढ़े,
दूसरा चाहता है — भीतर कोई एक दीपक जल उठे।
जो आध्यात्मिक होता है, वह कभी संगठन नहीं बनाता;
पर जब वह चला जाता है, तो उसके नाम पर मंदिर, ट्रस्ट, संस्था खड़ी हो जाती है —
और धीरे-धीरे, उसकी आत्मा एक ब्रांड बन जाती है।
यहीं से जन्म होता है “धार्मिक गुरु” का —
आध्यात्मिक की मृत्यु के बाद उसका शव रूपी धर्म।
असली गुरु की पहचान सरल है —
वह कभी तुम्हें अपने नीचे नहीं रखता।
वह तुम्हें तुम्हारे भीतर भेजता है।
बाकी सब —
बस अमेरिकन डायमंड हैं।
चमकते खूब हैं, पर काट किसी को नहीं सकते।
और हाँ,
हीरा कभी बाज़ार में नहीं बिकता,
वह तो पहाड़ के भीतर ही मिलता है —
जहाँ पहुँचना मेहनत माँगता है, श्रद्धा नहीं।
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲