कविता शीर्षक :🛡️ छावा 🛡️
वीर शिवबाला का तेज उजाला,
मराठा शेर, धरा का लाला।
वह सिंह था युद्धभूमि का,
जिससे काँपा था काल भी साला।
रक्त में बहती थी ज्वाला,
धरती ने देखा वह आला।
सत्य धर्म की रखवाली में,
काट दी देह, न दी गद्दारी को जाला।
छावा — नाम ही गर्जन है,
हर शब्द में रणभेरी का वचन है।
मातृभूमि के लिए जिसने सहा,
वह संभाजी, मराठा रतन है।
मौत आई, पर आँख न झुकी,
शौर्य की ज्वाला कभी न रुकी।
हिंदवी स्वराज का प्रहरी बना,
इतिहास में अमर “छावा” लिखी।
🔥 जय संभाजी महाराज! 🔥