Hindi Quote in Quotes by Vedanta Two Agyat Agyani

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मोह क्या है, इसकी उत्पत्ति कैसे होती है और इसका सकारात्मक पहलू क्या है?

मोह, वासना और लोभ — ये तीन अलग-अलग नहीं हैं।
ये एक ही वृक्ष के फल हैं।
एक को दबाओ, दूसरा उग आता है।
क्योंकि कारण एक ही है —
हम अपने आप को केवल देह मान बैठे हैं।

वास्तव में हम केवल शरीर नहीं हैं।
यह देह तो एक माध्यम है, एक सूर्य की किरण है।
असल में हम उस अग्नि के गोले से आए हैं —
चेतना की अग्नि से।

हमारी दृष्टि जब केवल देह पर रुक जाती है,
तो ऊर्जा का प्रवाह ठहर जाता है।
यही ठहराव “मोह” बनता है।
देह को सत्य मान लेना ही मोह की जड़ है।
क्योंकि तब आत्मा, जो साक्षी है,
वह पीछे हट जाती है —
और चेतना देह में बंध जाती है।

जब दृष्टि पुनः भीतर मुड़ती है,
और हम उस चेतन स्रोत को देखने लगते हैं
जिससे जीवन बह रहा है,
तो वही मोह, वही ऊर्जा
प्रेम, आनंद और शांति में बदल जाती है।
इसलिए मोह को नकारना नहीं, समझना चाहिए।
यह आत्मा की एक गलत दिशा में बहती हुई शक्ति है।

मोह का सकारात्मक पहलू यही है —
यदि तुम उसकी दिशा बदल दो,
तो वही मोह भक्ति बन सकता है,
वही आसक्ति समर्पण बन सकती है,
वही तृष्णा ध्यान बन सकती है।

मूल में दोष दिशा का है, न कि ऊर्जा का।
भीतर का विकास रुक जाए,
तो ऊर्जा विकृति बन जाती है —
वह क्रोध, मोह, लोभ का रूप लेती है।
पर वही ऊर्जा यदि भीतर लौटे,
तो वही शक्ति आत्मा का प्रकाश बनती है।

हम आज केवल गति प्रधान हो गए हैं —
चलना जानते हैं, रुकना नहीं।
जब तक रुकना, देखना, मौन में उतरना नहीं सीखेंगे,
तब तक मोह की जड़ नहीं कटेगी।
रुकना ही संतुलन है,
और यही संतुलन — मुक्ति का आरंभ।

अज्ञात अज्ञानी
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सब परिणाम पर भिड़े हैं — फल से प्रेम, फल से नफरत, फल से धर्म, फल से पाखंड।

धर्मगुरु हों या बुद्धिजीवी —
सब बस परिणामों की व्याख्या करते हैं।
किसी को कारण में उतरने का धैर्य नहीं।
वे यह नहीं देखते कि हर फल के पीछे
एक ही बीज है — अज्ञान।

जब तक कोई भीतर के कारण को नहीं देखता,
वह या तो प्रचारक बनता है या आलोचक,
पर साधक नहीं बनता।

धर्म का सच यह है कि
वह तब तक झूठ है जब तक तुम्हें भीतर की दृष्टि न मिल जाए।
और बुद्धि तब तक मूर्ख है
जब तक वह मौन में झुकना न सीख ले।

Hindi Quotes by Vedanta Two Agyat Agyani : 112002371
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