Hindi Quote in Poem by Agyat Agyani

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सूत्र : धर्म और ईश्वर की भ्रांति

सारे रंग उसके हैं —
फिर भी मनुष्य नए रंग और रूप गढ़कर
अपना ईश्वर बना लेता है।

जो है, वही सब कुछ ईश्वर है —
फिर भी मनुष्य उसे बाँट देता है,
कहता है — “यह मेरा ईश्वर है।”

इस तरह वह अनगिनत जन्मों तक
ईश्वर को जान नहीं पाता।

वह स्वयं ईश्वर की लीला है,
और फिर भी अलग ईश्वर रच रहा है।
सड़कें, शहर, साधन — ये मनुष्य के हैं,
पर वृक्ष, नदियाँ, ऋतु, आकाश —
सब उसी के रंग हैं।

वह स्वयं बो रहा है,
स्वयं पाल रहा है,
स्वयं संहार कर रहा है।

फिर भी मनुष्य पूछता है —
“मेरा ईश्वर कौन है?”

शायद वह अपने को
अस्तित्व से अलग मान बैठा है,
अपना निजी अस्तित्व गढ़ना चाहता है।

यही असंभव प्रयास —
बंधन है, अंधकार है, अज्ञान है।

और इसी अंधकार का नाम तुमने धर्म रख दिया है।

— ✍🏻 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

Hindi Poem by Agyat Agyani : 112002291
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