🦋... SuNo ┤_★__
कोई पूछे तो क्या हो ग़म की शिद्दत
किस तरह रोई,
ज़मीं पर आ के देखो आसमानों की
कज़ा रोई,
वो लिपटा जिस्म है, या प्यार का
मंज़र है वीराना,
वो मासूमियत है जिसकी आरज़ू पर
ये दुनिया रोई,
ये चादर जिस पे अरबी नक़्श हैं ये
ओढ़नी माँ की,
कि इक तारीख़ है जो हर्फ़-दर-हर्फ़
आज़ादी रोई,
कहाँ तक देखें हम, इस ज़ुल्म की
तारीख़ को लिख कर,
ये पत्थर रो पड़े, ये रेत की दीवार-ओ-
दर रोई,
परिंदा 🕊 बैठा है काँधे पे, शायद
पूछता होगा,
ज़रा सा अम्न दे दो, इस वतन में क्यूँ
हवा रोई,
ऐ इन्सानों सुनो, ये दास्ताँ बे-जान
लबों की है,
कि इक कलियाँ, खिली भी ना थी
और गुलज़ार रोई...🔥
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♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
➛#LoVeAaShiQ_SinGh ☜
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