*"बहुत याद आते हैं बचपन के दिन"*
बहुत याद आते हैं बचपन के दिन,
वो काग़ज़ की कश्ती बना के पानी में बहाना,
बेमौसम बारिश में भीग जाना,
और फिर मम्मी की डांट से मुस्कुराना।
वो रंग-बिरंगे पतंग खुद से बनाना,
धागों में मनझा लगाकर छत पर चढ़ जाना,
"वो काटा!" की आवाज़ में जीत का जोश,
हर आसमान अपना लगता था उस दोपहर।
बहुत याद आते हैं बचपन के दिन…
वो लट्टू को घुमा-घुमा कर देखना,
काँच के कंचों में सारी दुनिया समेट लेना,
नीम के पेड़ पर झूला डालकर,
हवा से बातें करना, सपने बुन लेना।
ना कोई फ़िक्र थी, ना कोई हिसाब,
हर दिन ईद, हर रात ख़्वाब।
बहुत याद आते हैं वो बचपन के दिन…
सच कहूं,
वक़्त तो बड़ा हो गया,
पर दिल… अब भी छोटा ही है कहीं।
*— Naina*