✧ धन्यवाद — दर्शन की पहली सीढ़ी ✧
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
अस्तित्व की धरती पर जो रचना फैली है —
वह किसी एक कलाकार की कल्पना नहीं,
स्वयं सृष्टि की सांस है।
हर नियम, हर गति, हर आकार
एक अदृश्य संगीत पर नृत्य कर रहा है।
जो मनुष्य इस नृत्य को देख पाता है,
उसके भीतर स्वतः एक धन्यवाद उठता है —
बिना कारण, बिना शब्द।
वह धन्यवाद किसी भगवान को नहीं,
स्वयं उस अस्तित्व को है
जिसने इतना सुंदर खेल रचा है।
पर मनुष्य वहाँ नहीं ठहर पाता।
वह सुंदरता को किसी व्यक्ति में बाँध देता है —
गुरु में, मूर्ति में, धर्म में।
क्योंकि उसे स्रोत को देखना कठिन लगता है।
व्यक्ति दिखता है, स्रोत नहीं दिखता —
और मन दृश्य पर ठहरना चाहता है।
वहीं से भ्रम जन्म लेता है।
मनुष्यों की ईर्ष्या, पूजा, प्रतियोगिता —
सब उसी पकड़ से निकली हैं।
जब दृष्टि व्यक्ति से आगे बढ़ती है,
तो उसके पीछे का कलाकार दिखने लगता है —
जो हर रूप में छिपा है,
और फिर भी किसी में बंद नहीं।
यही देखना आध्यात्मिकता है।
जहाँ पर्दे गिरते हैं,
जहाँ विचार मौन होते हैं,
और केवल देखने की कला बचती है।
उस क्षण में न धर्म की ज़रूरत है,
न गुरु की, न किसी शास्त्र की —
क्योंकि देखने वाला स्वयं ही
साक्षी बन गया है।
यही पहली सीढ़ी है दर्शन की —
धन्यवाद।
जहाँ कुछ पाने की नहीं,
बस देखने और मानने की कला बचती है।
यहीं से बुद्धि संवेदना बनती है,
और संवेदना फिर मौन में विलीन।
जो देखना सीख गया,
वह पूजा करना छोड़ देता है —
क्योंकि अब हर चीज़ ही पूजा है।