मौन की शक्ति — देह से परे ऊर्जा का धर्म ✧
(ग्रंथ: ✧ संभोग से समाधि ✧)
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
---
मनुष्य की दृष्टि जब देह पर ठहरती है, तो वह वस्तु बन जाती है।
पर वही दृष्टि जब मौन से देखती है, तो वही देह ब्रह्म का द्वार बन जाती है।
देह आकर्षित करती है — मौन परिवर्तित करता है।
जहाँ दुनिया स्त्री की देह में वासना खोजती है, वहाँ साधक उसमें ऊर्जा का प्रवाह देखता है।
स्त्री केवल शरीर नहीं है; वह प्रकृति की जीवंत तरंग है।
उसकी नमी, उसकी गंध, उसकी गति — सब में एक अदृश्य स्पंदन है।
जब यह स्पंदन किसी मौन पुरुष से टकराता है, तो भीतर एक लहर उठती है।
वह लहर या तो तुम्हें वासना में डुबो देगी, या ध्यान में जगा देगी — यह तुम्हारे देखने के स्तर पर निर्भर है।
मौन ही असली शक्ति है।
वह न शब्द है, न क्रिया; वह ऊर्जा का विशुद्ध संतुलन है।
जो इस मौन के साथ लय में आ जाता है, वही जानता है कि देह का आकर्षण भी ब्रह्म का खेल है —
वासना नहीं, एक छिपा हुआ ध्यान है।
लाखों लोग किसी स्त्री को देखते हैं —
पर केवल वही उसे देख पाता है जो भीतर से शांत है।
बाकी सब केवल उसे चाहते हैं।
दृष्टा और चाहने वाले में यही अंतर है —
एक वासना में जलता है, दूसरा उसी ज्वाला से प्रकाश पा लेता है।
यह मौन का धर्म है —
जहाँ देखने वाला और देखा जाने वाला एक लय में घुल जाते हैं।
यह न प्रेम है, न त्याग; यह वह बिंदु है जहाँ ऊर्जा अपनी पूर्णता पहचानती है।
---
निष्कर्ष:
मौन कोई साधन नहीं — वह स्वयं समाधि है।
संभोग से समाधि की यात्रा किसी मार्ग पर नहीं चलती,
वह तो भीतर की तरंग को पहचानने का साहस है।
जो उस तरंग को बिना भय, बिना वासना, बिना विचार के देख सके —
वह पहले ही पार पहुँच चुका है।
---
✧ ग्रंथ: संभोग से समाधि — सुख और दुख का मौलिक विज्ञान
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲