सच्चाई आमतौर पर कड़वी होती है, इसलिए लोग उसे शब्दों की मीठी चाशनी में नापसंद कर देते हैं। जितनी शोर शराबा, उतने अधिक विचार-जाल — एक शब्द भीतर डालो तो सो हजार निकलते हैं। हमारे पास सिर्फ़ तीन मूल चीज़ें हैं: देह, मन और आत्मा। मन दोनों छोरों का पुल है; यदि तुम देह-प्रधान हो तो आत्मा दिखनी बंद हो जाती है और बाहर के गुरु, किताबें, रीति-रिवाज़ ही ईश्वर बन जाते हैं — बाजार की चीज़ें। असली अभ्यास यह है: शब्दों का नियंत्रण, मौन में रुकना, और शरीर-मन के बीच वह शून्य खोजना जहाँ असली केंद्र है। वहाँ खड़े होकर बुद्धि-इंद्रियाँ जरूरत पर काम करें, अन्यथा सब शांत। कुछ जन्म लगेगा — मन की छोटी-मोटी मृत्यु — पर वही नया जन्म है।