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Manish Borana

Manish Borana

@manishborana.210417


✧ રાવણની સિદ્ધિ — અમર તત્ત્વની કહાની ✧

પ્રસ્તાવના

રાવણની કથા માત્ર રામાયણનું યુદ્ધકથાનક નથી.
એ વિદ્યાનું, ભક્તિનું, વિજ્ઞાનનું અને મુક્તિની શોધનું પ્રતિક છે.
તેને નાભિ-સાધના દ્વારા મરણને રોકી દીધું,
અને સૃષ્ટિના નિયમને ક્ષણભર માટે અટકાવી દીધો.
પરંતુ આ જ એની સૌથી મોટી ભૂલ બની —
કારણ કે મૃત્યુ જ તો મોક્ષનો દ્વાર છે.

રામ અને રાવણનો સંઘર્ષ સારા અને ખરાબનો નથી,
પણ સિદ્ધિ અને મુક્તિનો ટકરાવ છે.
દરેક મનુષ્યની અંદર આજેય આ જ દ્વંદ્વ જીવંત છે.


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✧ અધ્યાય યાદી ✧

1. અધ્યાય 1 — નાભિનું રહસ્ય


2. અધ્યાય 2 — રાવણ: વિદ્યા અને સિદ્ધિનો સમ્રાટ


3. અધ્યાય 3 — અમરત્વની સાધના


4. અધ્યાય 4 — સિદ્ધિ સામે મુક્તિ


5. અધ્યાય 5 — વિભીષણનું રહસ્યોદ્ઘાટન


6. અધ્યાય 6 — રાવણ અને આજનું જગત


7. અધ્યાય 7 — શિક્ષા: રામ સામે રાવણ


8. અધ્યાય 8 — રાવણ સંહિતા અને આજનો ધર્મ


9. અધ્યાય 9 — ધર્મનું સાચું સ્વરૂપ


10. અધ્યાય 10 — રાવણ: મારી દૃષ્ટિએ


11. અધ્યાય 11 — સૃષ્ટિનો નિયમ અને રાવણનો અપવાદ



અજ્ઞાત અજ્ઞાની

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✧ रावण की सिद्धि — अमर तत्व की कहानी ✧

प्रस्तावना

रावण की कथा केवल रामायण की युद्धकथा नहीं है।
यह विद्या, भक्ति, विज्ञान और मुक्ति की खोज का प्रतीक है।
उसने नाभि-साधना से मृत्यु को रोका और
सृष्टि के नियम को क्षणभर के लिए टाल दिया।
पर यही उसकी सबसे बड़ी भूल बनी —
क्योंकि मृत्यु ही मोक्ष का द्वार है।

राम और रावण का द्वंद्व अच्छाई और बुराई का नहीं,
बल्कि सिद्धि और मुक्ति का संघर्ष है।
हर मनुष्य के भीतर यही द्वंद्व आज भी जीवित है।

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✧ अध्याय सूची ✧

1. अध्याय 1 — नाभि का रहस्य

2. अध्याय 2 — रावण: विद्या और सिद्धि का सम्राट

3. अध्याय 3 — अमरत्व की साधना

4. अध्याय 4 — सिद्धि बनाम मुक्ति

5. अध्याय 5 — विभीषण का रहस्योद्घाटन

6. अध्याय 6 — रावण और आज की दुनिया

7. अध्याय 7 — शिक्षा: राम बनाम रावण

8. अध्याय 8 — रावण संहिता और आज का धर्म

9. अध्याय 9 — धर्म का असली स्वरूप

10. अध्याय 10 — रावण: मेरी दृष्टि में

11. अध्याय 11 — सृष्टि का नियम और रावण का अपवाद

अज्ञात अज्ञानी

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अध्याय : शब्दों में छिपा आत्मा का रहस्य ✧

“हर हर महादेव”, “राम राम”, “ॐ नमः शिवाय”, “सत्यम् शिवम् सुंदरम्”—
ये शब्द डायलॉग या जयकार नहीं हैं।
ये ध्वनि के रूप में वह द्वार हैं, जिनसे आत्मा अपने ही स्रोत को छू सकती है।

पर मनुष्य ने इन्हें रहस्य से काटकर परंपरा बना दिया।
अब ये शब्द सिर्फ़ नारों की तरह गूँजते हैं—भीड़ को गरमाते हैं,
लेकिन साधक को भीतर नहीं उतारते।

रहस्य के अर्थ

हर हर महादेव : हर आत्मा में वही महादेव। यह घोषणा है कि कोई छोटा-बड़ा देवता नहीं—हर प्राणी स्वयं शिव है।

राम राम : “रा” = प्रकाश, “म” = मौन। राम = प्रकाश और मौन का संगम।
“राम राम” = मेरे भीतर वही, तेरे भीतर वही। आत्मा का आत्मा को नमन।

ॐ नमः शिवाय : अपने ही मूल स्वरूप को प्रणाम।

सत्यम् शिवम् सुंदरम् : सत्य ही शिव है, और शिव ही सुंदर।

प्रयोग : “राम राम” का अनुभव

1. ध्यान में

बैठो शांत।

श्वास के साथ भीतर कहो: “रा…” (श्वास अंदर),
श्वास छोड़ते हुए: “…म।”

दूसरी बार वही दोहराओ: “रा… म।”

यह “राम राम” अब गाथा नहीं, बल्कि श्वास और मौन का संगम बन जाता है।
धीरे-धीरे यह अनुभव कराओ कि प्रकाश (रा) और मौन (म) एक ही बिंदु में मिल रहे हैं।

2. रोज़मर्रा में

जब किसी को अभिवादन में कहो “राम राम”—
तो मन में स्मरण करो: मैं तेरे भीतर की आत्मा को नमन कर रहा हूँ, जैसे अपनी आत्मा को करता हूँ।

यह अभ्यास धीरे-धीरे शब्द को आदत से उठाकर अनुभव में बदल देगा।

3. भीतर के संकेत

जब “राम राम” का उच्चारण भीतर पक्का हो जाता है,
तब यह तुम्हें याद दिलाता है कि मैं और तू अलग नहीं हैं।

तब शब्द नहीं, बल्कि उसकी तरंग ही ध्यान बन जाती है।

निष्कर्ष

शब्द सरल हैं, पर उनमें ब्रह्मांड का रहस्य भरा है।
“राम राम” या “हर हर महादेव”—ये भीड़ के नारे नहीं,
बल्कि आत्मा के दर्पण हैं।
जो इनका रहस्य अनुभव करता है,
वह बड़े शास्त्रों की किताबों का मोहताज नहीं रहता।

अध्याय : उद्घोषों में छिपा ब्रह्मांड ✧

धार्मिक परंपरा में जो शब्द हम रोज़ सुनते हैं—
“हर हर महादेव”, “राम राम”, “ॐ नमः शिवाय”, “सत्यम् शिवम् सुंदरम्”—
उन्हें आमतौर पर जयकार समझा गया।
पर उनका असली स्वरूप उद्घोष नहीं,
बल्कि आत्मा–परमात्मा का रहस्य है।

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१. हर हर महादेव

अर्थ : हर आत्मा में वही महादेव। कोई एक देवता नहीं, बल्कि यह घोषणा कि हर जीव स्वयं शिव है।

गुण :

दुख, पाप, अज्ञान—सबका हरण।

मृत्यु और जन्म के चक्र से मुक्ति।

अहंकार का संहार और आत्मा का उदय।

प्रतीक :

भीड़ ने इसे युद्धनारा बना दिया,
जबकि यह था—हर प्राणी में देवत्व को पहचानने का उद्घोष।

अनुभव प्रयोग :

आँखें बंद करके किसी भी व्यक्ति को देखो और मन में कहो: “हर हर महादेव।”

भीतर से स्मरण करो—उसमें भी वही महादेव है।

धीरे-धीरे यह अभ्यास सबमें देवत्व देखने का ध्यान बन जाता है।

२. राम राम

अर्थ : “रा” = प्रकाश, अग्नि, विस्तार। “म” = मौन, बिंदु, लय।
राम = प्रकाश और मौन का संगम।
“राम राम” = मेरे भीतर वही, तेरे भीतर वही।

गुण :

आत्मा को आत्मा का नमन।

स्मरण कि मैं और तू अलग नहीं हैं।

प्रतीक :

गाथा और कथा ने इसे राजा राम तक सीमित कर दिया।

पर असली “राम” शब्द भीतर से सहज उठी ध्वनि है, जैसे बच्चा पहली बार “मां” कहता है।

अनुभव प्रयोग :

1. श्वास अंदर खींचते हुए मन में “रा”, बाहर छोड़ते हुए “म”।

2. दूसरी बार फिर “राम”—प्रकाश और मौन को मिलाना।

3. किसी को “राम राम” कहते समय भीतर स्मरण करना कि मैं तेरी आत्मा को नमन कर रहा हूँ।

३. ॐ नमः शिवाय

अर्थ : “ॐ” = अस्तित्व का मूल नाद।
“नमः” = झुकना, समर्पण।
“शिवाय” = शिवस्वरूप को।
यानी “मैं अस्तित्व के मूल शिवस्वरूप को नमन करता हूँ।”

गुण :

अहंकार का गलना।

आत्मा का अपने ही स्रोत के आगे समर्पण।

यह जप व्यक्ति को धीरे-धीरे भीतर के शिव में स्थिर करता है।

प्रतीक :

आज इसे यांत्रिक जप बना दिया गया, पर असली अर्थ है—
मैं स्वयं को अपने ही अनंत स्वरूप के हवाले कर रहा हूँ।

अनुभव प्रयोग :

बैठो, गहरी श्वास लो, और धीमे स्वर में “ॐ नमः शिवाय” बोलो।

हर बार अनुभव करो कि तुम अपने ही भीतर के अनंत को नमन कर रहे हो।

४. सत्यम् शिवम् सुंदरम्

अर्थ :

सत्यम् = सत्य, जो है वही।

शिवम् = कल्याणकारी, जो मुक्ति देता है।

सुंदरम् = सौंदर्य, जो आत्मा को भर देता है।
यानी सत्य ही शिव है, और शिव ही सुंदरता।

गुण :

यह उद्घोष जीवन के तीन मूल स्तंभ बताता है।

सत्य से शिवत्व, शिवत्व से सौंदर्य।

प्रतीक :

इसे महज़ मंदिर की दीवारों की सजावट बना दिया गया,
जबकि यह तीन शब्द जीवन का पूर्ण दर्शन हैं।

अनुभव प्रयोग :

जब कोई सुंदर दृश्य देखो, मन में स्मरण करो—
“यह सुंदरता सत्य और शिव से जन्मी है।”

जब कोई सत्य स्वीकारो, अनुभव करो—यही सुंदरता का मूल है।

निष्कर्ष

ये चार उद्घोष केवल जयकार नहीं।
ये साधारण शब्दों में छिपे ब्रह्मांड हैं।
“हर हर महादेव” से लेकर “राम राम” तक—
हर ध्वनि आत्मा को उसके ही मूल की याद दिलाती है।

पर दुर्भाग्य यह है कि धर्म ने इन्हें भीड़ की आदत बना दिया।
जयकार बाकी रही, पर रहस्य खो गया।
साधक का काम है इन्हें फिर से जीवित करना—
आवाज़ नहीं, अनुभव बनाना।

क्योंकि सच्चा शास्त्र किताबों में नहीं,
बल्कि हमारी रोज़मर्रा की ध्वनियों में छिपा है।

सत्य छुपा नहीं है,
सत्य रोज़ बोलने वाली ध्वनियों में ही बसा है।

#agyatagyan

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जीवन का संतुलन — विज्ञान, धर्म और आत्मा का संगम
📖 यह ग्रंथ किसी धर्म की पुनरावृत्ति नहीं, न ही विज्ञान का विरोध।
यह मनुष्य के भीतर से निकला हुआ सत्य है —
जहाँ विज्ञान की खोज, शास्त्र की दृष्टि, और अनुभव का मौन एक साथ मिलते हैं।https://atamagyam.blogspot.com

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जीवन का संतुलन — विज्ञान, धर्म और आत्मा का संगम
📖 यह ग्रंथ किसी धर्म की पुनरावृत्ति नहीं, न ही विज्ञान का विरोध।
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जहाँ विज्ञान की खोज, शास्त्र की दृष्टि, और अनुभव का मौन एक साथ मिलते हैं।https://atamagyam.blogspot.com

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✧ जीवन का संतुलन — विज्ञान, धर्म और आत्मा का संगम ✧
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

📖 यह ग्रंथ किसी धर्म की पुनरावृत्ति नहीं, न ही विज्ञान का विरोध।
यह मनुष्य के भीतर से निकला हुआ सत्य है —
जहाँ विज्ञान की खोज, शास्त्र की दृष्टि, और अनुभव का मौन एक साथ मिलते हैं।

🌱 अध्याय झलक:

1. पाना बनाम जीना

2. पुरुष और स्त्री — हृदय–बुद्धि का संतुलन

3. धर्म और विज्ञान की सीमा
... कुल 12 अध्याय।

✨ जीवन को पाने नहीं, जीने का आमंत्रण।

🔗 पूरा ग्रंथ (फ्री में पढ़ें):
https://atamagyam.blogspot.com

#आध्यात्मिक #IndianPhilosophy #spirituality #osho #AI #vedanta

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सूक्ष्मे सत्यं, स्थूले माया।”
(सूक्ष्म में सत्य है, स्थूल में केवल छाया।)
✍🏻 — 🙏🌸 Agyat Agyani

प्रस्तावना

मनुष्य ने शक्ति को हमेशा बाहरी रूप में देखा — धन, साधन, सेना, विज्ञान।
पर सृष्टि बार-बार दिखाती है कि असली शक्ति सूक्ष्म में छिपी है।
एक अदृश्य जीव दाँत और हड्डी को गलाता है, जिन्हें अग्नि तक नष्ट नहीं कर पाती।
नन्हा बीज विशाल वृक्ष बनता है।
सूक्ष्म श्वास ही जीवन का आधार है।
विज्ञान हमें प्रमाण देता है, शास्त्र गूढ़ संकेत देता है, तर्क दिशा देता है और श्लोक सत्य को सूत्र में बाँध देते हैं।
इन्हीं चार दृष्टियों से यहाँ २१ सूत्र रखे गए हैं
मनुष्य की प्रवृत्ति रही है कि वह शक्ति को हमेशा बाहरी रूपों में ढूँढता है।
उसे लगता है कि शक्ति वही है जो दिखाई दे — धन का अंबार, साधनों की अधिकता, हथियारों का शोर, या विज्ञान की बड़ी-बड़ी मशीनें।
परंतु सृष्टि का नियम इससे भिन्न है।

विज्ञान (scientific fact/observation)

शास्त्र (scriptural echo/quote style)

तर्क (logical reflection)

विस्तृत पढ़े 👉 https://atamagyam.blogspot.com

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✧ गीता-सूत्र श्लोक १ ✧

नाहं कर्ता न च भोक्ता, नाहं सत्यनिर्णायकः।
अस्तित्वमेव सर्वकर्ता, तस्मै समर्पये मनः॥

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📖 अर्थ :
“न मैं कर्ता हूँ, न भोग करने वाला, और न ही सत्य का निर्णायक।
सर्वकर्ता तो केवल अस्तित्व है — उसी को मैं अपना मन अर्पित करता हूँ।”

गीता-सूत्र ✧

(कर्तापन का त्याग – अकर्तापन का धर्म)

1. मैं न सही हूँ, न ग़लत —
सत्य का निर्णय अस्तित्व करता है।

2. जो स्वयं को सही कहता है,
वह भविष्य के दुःख का बीज बोता है।

3. कर्ता बनने की आकांक्षा ही बंधन है।

4. अकर्तापन ही मुक्ति है।

5. जो भीतर से सहज आता है,
वही पालन करने योग्य धर्म है।

6. परिणाम मेरा नहीं,
परिणाम अस्तित्व का है।

7. मैं साधन नहीं, साक्षी हूँ।

8. मैं करने वाला नहीं,
अस्तित्व मेरे द्वारा करता है।

9. फल की चिंता करने वाला
पहले ही बंधन में गिर चुका है।

10. कर्म निष्काम है तो शुद्ध है।

11. स्वार्थ ही कर्म को कलुषित करता है।

12. अस्तित्व के प्रवाह को समर्पित हो जाना ही योग है।

13. कर्तापन अहंकार है,
अकर्तापन आत्मा है।

14. जो “मैं करता हूँ” कहता है,
वह दुःख का निर्माता है।

15. जो “अस्तित्व करता है” देखता है,
वह आनंद का साक्षी है।

16. कर्ता बने रहना मृत्यु का बोझ ढोना है।

17. अकर्तापन में ही जीवन का नृत्य है।

18. जो परिणाम को छोड़ दे,
वही वास्तव में कर्म करता है।

19. करना तुम्हारा है,
फल अस्तित्व का है।

20. यही कृष्ण का गीता-संदेश है —
कर्म करो, कर्ता मत बनो।

21. जब कर्तापन मिटता है,
तभी आत्मा प्रकट होती है।
अज्ञात अज्ञानी

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