मन में सवालों का सैलाब सा उमड़ आया है
हर घड़ी कुछ करने का तय कर फिर मन क्यों
समय गवाने को बहकाया है।।
इरादे है मजबूत और साहस की भरमार है
पर इन हवाओं ने फिर पैरो को डगमगाया है।।
कुछ ठान के निकले थे जो कदम उनमें ऊर्जा काम तो नई हुई
बस इस नगर की कठिनाइयों ने धीमा इन्हे बनाया है।।
कभी मंद तो कभी तीव्र ये निरंतरता थमनी नहीं चाहिए
प्रतिदिन एक समान तो नही पर मेहनत होनी चाहिए।।
- Akanksha Vaishnav