🌼 श्रीकृष्ण जन्म की कथा 🌼
बहुत समय पहले, मथुरा नगरी में अत्याचारी राजा कंस का राज चलता था। कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था, लेकिन जब उसकी शादी वसुदेव जी से हुई और विदाई के समय आकाशवाणी हुई –
"कंस! तुम्हारी बहन देवकी की आठवीं संतान ही तुम्हारा वध करेगी।"
यह सुनकर कंस का प्रेम क्रूरता में बदल गया। उसने देवकी और वसुदेव को कारागार में कैद कर लिया और उनकी सात संतानें निर्दयता से मार डालीं।
🌙 आठवीं संतान का जन्म होने वाला था। आधी रात का समय था, अंधकार छाया हुआ था, लेकिन उसी क्षण दिव्य प्रकाश फैला। देवकी ने अपने गर्भ से एक दिव्य बालक को जन्म दिया — स्वयं भगवान विष्णु ने अवतार लिया था।
उन्होंने वसुदेव को आदेश दिया –
"मुझे गोकुल ले जाकर नंद-यशोदा के घर रख आओ और वहाँ जन्मी कन्या को यहाँ ले आओ।"
वसुदेव ने देखा कि सभी पहरेदार सो रहे हैं, जेल के दरवाजे अपने आप खुल गए और यमुना नदी का जल उनके रास्ते को सरल कर रहा है। सिर पर टोकरी में नन्हें कृष्ण को लिए वसुदेव गोकुल पहुँचे और यशोदा मैया के घर शिशु को छोड़कर कन्या को साथ ले आए।
सुबह जब कंस ने कन्या को मारना चाहा तो वह कन्या देवी योगमाया के रूप में प्रकट होकर आकाश में चली गईं और बोलीं –
"हे कंस! तेरा वध करने वाला तो कहीं और जन्म ले चुका है।"
उस दिन से लेकर आज तक हम सब कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं – नटखट कान्हा की बाल-लीलाओं को याद करते हैं, माखन-चोरी की मधुर कथाओं में खो जाते हैं और उनके प्रेम, भक्ति और धर्म के संदेश को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं।
---
🌸✨
संदेश:
यह कथा हमें सिखाती है कि चाहे अत्याचार कितना भी बड़ा क्यों न हो, धर्म और सच्चाई की विजय निश्चित है।