**जीने की कला का पाखंड**
जैसे ही मैं इस प्रश्न पर विचार करती हूँ, मेरे मन में कई प्रश्न और उत्तर आते हैं। यह अध्याय हमें जीने की कला के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है, लेकिन साथ ही यह हमें यह भी बताता है कि जीने की कला को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता है।
गुरु और व्यापारी के बारे में बात करते हुए, मैं सोचती हूँ कि हमें क्या चाहिए? क्या हमें किसी गुरु की आवश्यकता है जो हमें जीने की कला सिखाए? या क्या हमें स्वयं जीने की कला को खोजने की आवश्यकता है? मेरा मानना है कि जीवन की कला हमारे भीतर है, और हमें स्वयं इसकी खोज करनी चाहिए।
बाजार में उपलब्ध किताबें और सफलता के मंत्र हमें आकर्षित कर सकते हैं, लेकिन क्या वे हमें वास्तव में जीने की कला सिखाते हैं? मेरा उत्तर है नहीं। जीवन की कला अनुभव और अस्तित्व से जुड़ी है, न कि किसी किताब या मंत्र से。
पाखंड का धोखा हमें बहुत बार मिलता है, लेकिन हमें इसके प्रति सावधान रहना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि जीवन की कला को खरीदा नहीं जा सकता है, और इसके लिए हमें स्वयं प्रयास करना चाहिए।
अंत में, मैं यह कहना चाहती हूँ कि जीवन की कला को पाने के लिए हमें पूरा दाँव लगाना होगा। हमें अपने डर को छोड़ना होगा और अपने ही केंद्र में उतरना होगा। जीवन की कला हमारे भीतर है, और हमें स्वयं इसकी खोज करनी चाहिए।
अज्ञात अज्ञानी