✧ कथा-वाचकों की वास्तविकता ✧
आजकल प्रवचन देने वाले साधारणत: तोते बने हुए हैं —
शास्त्र पढ़ लिया, याद कर लिया, मंच पर जाकर सुना दिया।
लेकिन समस्या यह है:
वे अपने व्यक्तिगत अनुभव से नहीं बोलते।
समय और परिस्थिति की समझ नहीं दिखाते।
आज की समस्याओं का वास्तविक समाधान नहीं देते।
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✧ शास्त्र का उपयोग या दुरुपयोग? ✧
शास्त्र ज्ञान का स्रोत हैं, परंतु:
इसे पहले अपने जीवन में अनुभव कर पचाना चाहिए।
फिर उसे समय और समाज की ज़रूरत के अनुसार प्रस्तुत करना चाहिए।
लेकिन प्रवचनकर्ताओं का काम उल्टा है:
कच्चा ज्ञान जैसे खदान से निकला पत्थर, सीधे जनता पर फेंक दिया।
न समाधान देते हैं, न भ्रम मिटाते हैं।
उल्टे अंधविश्वास और संप्रदायवाद को और बढ़ावा देते हैं।
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✧ असली समस्या ✧
1. संस्था और गुरु का प्रचार – प्रवचनकर्ता अपने गुरु, अपनी परंपरा, अपनी संस्था को ही सर्वोपरि बताते हैं।
2. भ्रम फैलाना – समाधान की जगह और अधिक डर, भ्रम और अंधविश्वास बोते हैं।
3. प्रश्नों से बचना – जनता अगर सवाल करे तो तुरंत “शास्त्र में ऐसा लिखा है” कहकर निकल जाते हैं।
4. सामाजिक जिम्मेदारी का अभाव – असली प्रश्न (गरीबी, हिंसा, तनाव, शिक्षा, परिवार) पर चुप्पी साध लेते हैं।
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✧ जनता क्यों चुप है? ✧
डर: धर्म के नाम पर सवाल उठाने से लोग डरते हैं।
आदत: वर्षों से “प्रवचन = धर्म” मानकर बैठे हैं।
आलस्य: खुद सोचने–समझने की मेहनत नहीं करना चाहते।
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✧ निष्कर्ष ✧
आज के अधिकांश प्रवचन केवल चतुर वाणी का नाटक हैं,
न कि सच्चा आत्मानुभव।
धर्म का असली काम है –
✨ भ्रम मिटाना
✨ सत्य दिखाना
✨ शांति और प्रेम जगाना
लेकिन यह सब तभी संभव है जब प्रवचनकर्ता:
पहले स्वयं शास्त्र का अनुभव करे,
फिर समय और समाज की ज़रूरत देखकर बोले,
और जनता भी प्रश्न पूछने की हिम्मत करे।
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🌱 धर्म समाधान का नाम है, समस्या बढ़ाने का नहीं।
आज जरूरत है अनुभवजन्य, साहसी और सत्यनिष्ठ प्रवचनकर्ताओं की – जो केवल शास्त्र न सुनाएँ, बल्कि जीवन में जीकर सत्य को सामने रखें।