सजल
समांत - अढ़े
पदांत - चलो
मात्राभार - 12+12 = 24
रुको नहीं थको नहीं, तीव्र गति बढ़े चलो।
उद्घोष तुम जय करो, विकास पथ गढ़े चलो।।
इधर-उधर न देख तूँ, साध-दृष्टि सुलक्ष्य पर।
बन गया विजय का रथ, निर्भय हो चढ़े चलो।।
जब घिरी हो कालिमा, प्रकाश पुंज को जला।
नवीन पथ तलाश कर, अतीत को पढ़े चलो।।
अवरोध की जब दिखें, राह में दुश्वारियाँ ।
निराश भाव त्याग कर, तारों को कढ़े चलो।।
सँवारे हर पृष्ठ को, इतिहास को मान दें।
स्वर्णाक्षर में नाम लिख, फ्रेमों में मढ़े चलो।।
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'
19/8/25