जीवन का मूल सत्य — और उससे मुँह मोड़ने का खतरा ✧
मानव इतिहास में पद, प्रतिष्ठा, धन, सत्ता और नाम–यश की दौड़ कभी खत्म नहीं हुई है।
आज प्रधानमंत्री, कल राष्ट्रपति, परसों राजा, फिर कोई अभिनेता, वैज्ञानिक, उद्योगपति…
एक समाप्त हुआ नहीं कि नया लक्ष्य खड़ा हो गया।
यह चक्र अनंत है — एक युग में जितना चाहो, अगला युग नई इच्छाएँ लेकर आएगा।
यही चिलचिलाती प्यास मनुष्य को जीवनभर भटकाए रखती है।
❖ आध्यात्मिक विज्ञान से दूरी — सबसे बड़ी चूक
मनुष्य अपनी सारी ऊर्जा इस बाहरी खेल में लगाता है।
वह मानता है कि सबसे ऊँचा पद, सबसे अधिक धन, सबसे अधिक सुख भोग लेना ही जीवन का उद्देश्य है।
लेकिन वह भूल जाता है — यह सब आत्मिक विज्ञान का स्थानापन्न नहीं है।
यानी, जिससे जीवन उत्पन्न हुआ, उसी को वह अनदेखा कर देता है।
धार्मिक पाखंड और कर्मकांड आकर्षक लगते हैं,
क्योंकि वे यह वादा करते हैं —
"ईश्वर तुम्हारी सभी इच्छाएँ पूरी करेगा।"
लेकिन सच्चाई यह है कि बाहरी इच्छाओं की पूर्ति कभी अंत तक नहीं पहुँचती।
❖ वास्तविक "सब कुछ मिलना" क्या है?
आध्यात्मिकता में ‘सब कुछ मिलना’ का अर्थ है —
ऐसा आत्मिक आनंद, प्रेम, शांति और संतोष, जिसके बाद कुछ पाने की प्यास ही न बचे।
यह धन, पद या सत्ता नहीं देता —
लेकिन यह ऐसा सुख देता है जिसमें संसार के समस्त भोगों का रस समा जाता है।
जब किसी को यह आत्मिक स्वाद मिल जाता है,
तो वह देखता है — बाहर के भोग तो छाया भर थे;
असली आनंद तो भीतर है, जो कभी खत्म नहीं होता।
❖ मृत्यु की तरह निश्चित — आध्यात्मिक यात्रा
जैसे मृत्यु सबको निश्चित है,
वैसे ही आत्मिक मार्ग में प्रवेश भी सबके लिए निश्चित है —
चाहे जीवन में या मृत्यु के बाद।
जो इसे टालते हैं, वे केवल अपने ही जीवन को टालते हैं।
आध्यात्मिकता से मुँह मोड़ना मतलब —
जीवन के मूल कारण को, उसके सत्य को, अनदेखा करना।
❖ जागरण का संदेश
तुम चाहे कुछ भी पा लो —
जब तक भीतर का सत्य नहीं मिला,
तब तक पाने के बाद भी खालीपन बाकी रहेगा।
सच यह है —
आध्यात्मिक मार्ग ही एकमात्र स्थान है जहाँ सभी इच्छाएँ अपनी जड़ से शांत होती हैं।
बाकी सब खेल हैं — सुंदर, लुभावने, लेकिन अंतहीन।
अज्ञात अज्ञानी