🌼 अनुभूति – दिल से दिमाग तक की यात्रा 🌼
अनुभूति आई सुबह-सुबह, दरवाज़ा खटखटाई,
बोली — “मैं दिल से आई हूँ, ज़रा चाय तो पिलाई!” ☕
मैं बोला — “अभी-अभी तो टूटी है नींद प्यारी,
और तू लेने लगी है दर्शन की जिम्मेदारी?”
कभी खुशी में झूमती, कभी दुःख में रो देती,
बिना बुलाए आ जाए, बातों से बहका देती! 😅
जब छत पर आया कबूतर, बोली — “प्यार का संकेत है!”
पर नीचे गिरा जो परिंदा, बोली — “अरे ये तो लफड़े की रीत है!” 🐦
शर्म से बोली — “वो देखो, पड़ोसी मुस्कराया,”
मैं बोला — “बिजली का बिल आया है, वो रोने को छुपाया!” ⚡
फिर भूख लगी तो बोली — “देखो जीवन की साधना है,”
रोटी देख बोली — “प्रेम की सर्वोच्च भावना है।” 🍞
गर्मी में पंखा चला तो बोली — “शीतल स्पर्श की अनुभूति है,”
AC चला तो बोली — “बिल से जीवन में त्रुटि है!” 😂
Online क्लास में टीचर ने डाँटा — “Unmute कर के बैठा करो!”
अनुभूति बोली — “यह मौन साधना का चरम है, ज़रा संयम से सहो!” 🎧
खाँसी आई तो बोली — “कोरोना फिर से आया है,”
जब दादी ने हल्दी दी — “यही अनुभव तो माया है।” 🤧
मैं चुप बैठा मोबाइल में, reels देखता जा रहा था,
अनुभूति बोली — “अरे वाह! तुम तो Self-realisation पा रहा था!” 📱
प्याज़ काटते आँखें बहने लगीं — “ये तो सच्चा इश्क़ है!”
पर जब सब्ज़ी जली तो बोली — “तपस्या में फिस्क है।” 🧅🔥
अंत में बोली — “अब मैं जाऊँ, दिनभर काफी छाप छोड़ी,”
मैं बोला — “ठीक है बहन, पर कल मत आना, बहुत चिट्ठियाँ छोड़ी!” ✋
😄 "अनुभूति" — जब हो जाए थोड़ी ज़्यादा, तो जीवन बन जाए पूरी ड्रामा-सीधा नाटकशाला!
✍️ डॉ. पंकज कुमार बर्मन
(कटनी, मध्यप्रदेश)