तेरे बिना जो दिल पे गुज़री, कोई नहीं समझा सका,
हर मोड़ पर तन्हा ही निकला, कोई नहीं लौट आ सका।
तेरी निगाहों ने जो चाहा, वो हादसा बनता गया,
हम मुस्कुराते रह गए बस, दिल अंदर से मरता गया।
इश्क़ में खोकर हमने खुद को, जिस हाल में देखा नहीं,
दुनिया समझती थी मज़ाक़, पर दर्द कोई पढ़ ना सका।
चुपचाप हर आँसू बहाया, नाम तेरा लेकर मगर,
ये इश्क़ था या इबादत, कोई फ़र्क़ कर ना सका।
- Babul haq ansari