वो जो रोज़ आईने में खुद को देखती है,
वो खुद को नहीं देखती…
वो एक ऐसा सपना देखती है
जो कभी पूरा नहीं हुआ।
हर सुबह अपने चेहरे पर मुस्कान सजाती है,
ताकि दुनिया उसकी आँखों में छुपे सवाल न पढ़ सके।
मगर आईना जानता है —
वो अब भी उसी अधूरे ख्वाब में जी रही है,
जो कभी था तो उसका अपना,
मगर अब सिर्फ एक धुंधला अक्स बनकर
उसके सामने खड़ा रहता है…
हर रोज़, हर सुबह, हर साज़