(You… between my breaths)
तेरे होने की आहट भी नहीं आती,
फिर भी हर चीज़ में तू गूंजता है —
कभी खिड़की से आती धूप में,
कभी किताब के अधूरे पन्ने में।
तू हवा की तरह पास है,
और पानी की तरह छू भी नहीं सकता।
मैं रोज़ थोड़ा सा टूटता हूं…
तेरे थोड़ा और पास आने के लिए।
कभी तुझसे बात नहीं होती,
फिर भी तेरा जवाब रोज़ मिलता है —
किसी चुप लम्हे में,
या पुराने स्वेटर की जेब में रखे उस पुराने टिकट की तरह।