“अपने हुए पराये”
“अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये
ग़म की जो तक़दीर न होती, जो इतनी बेकिर न होती
दिल पर इतना बोझ ना होता, जोड़ी में जंजीर ना होती
अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये
जिन रहो से कोई ना आए, बैठे उनको नैना बिछाए
दिन नादान कहे जाता है, शायद वो शायद लौट आये
अपने-अपने हुए पराये
कौन है हम क्यू जाने कोई, अपना हमें क्यू माने कोई
बेहतर है इस बदहाली में, अब ना पहचाने कोई
अपने-अपने हुए पराये, किस्मत ने क्या दिन दिखाया
कुछ सोचो और कुछ हो जाए, हाय रे धीरज कोन बंधाए
अपने-अपने हुए पराये”
🥵
- Umakant