सफ़र है अधूरा, मगर साथ पूरा,
रास्तों ने सिखाया है, क्या है फिज़ा का सुरूर।
ना मंज़िल की परवाह, ना थकावट की फिक्र,
तेरे साथ चलना ही जैसे हो सबसे बड़ी तसल्ली की जिक्र।
ख्वाबों के नक्शे हैं हाथों में थमे,
कभी मुस्कान में खोये, कभी आंसुओं में जमे।
ना पता है कहाँ जाना है, ना लौटना कब है,
बस इतना जानते हैं—मुशाफिर हैं हम, और हमसफर तुम हो जब हैं।