मैं और मेरे अह्सास
बीते लम्हों के बारे में सोचा तो बहुत रोया l
हुस्न के लिखित खत खोया तो बहुत रोया ll
एक झलक देख लेने की तमन्ना में उसके l
घर के आगे से जब गुज़रा तो बहुत रोया ll
एक अरसा हुए बक्से में रखी क़िताब में l
पुरानी तस्वीरों को देखा तो बहुत रोया ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह