हो न हो आस-पास कोई
मेरे जितना उदास है कोई
सोचता हूँ तो और बढ़ती हैं
ज़िंदगी है कि प्यास हैं कोई
हादिसा एक भी नहीं गुजरा
बे-सबब बद-हवास हैं कोई
फिर परिंदे शजर से बिछड़े हैं
फिर से तस्वीर-ए-यास हैं कोई
अपनी उर्दू तो लोक भाषा हैं
इस से क्यूं ना-शनास हैं कोई
चन्द्रभान ख़याल
🙏
- Umakant