शायरी
अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे
वो आइना है तो फिर आइना दिखाए मुझे
अजब चराग हूँ दिन रात जलता रहता हूँ
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे
मैं जिसकी आँख का आँसू था उस ने कद्र न की
बिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे
बहुत दिनों से मै इन पत्थरों में पत्थर हूँ
कोई तो आए ज़रा देर को रुलाये मुझे
मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे
…..बशीर बद्र
- Umakant