कभी बन न पाऊं मरहम तेरा
अब कोई ऐसी खता कर जाऊंगी
तुमसे जुदा तो बहुत थी मैं
अब खुद से ही खुद को सजा दे जाऊंगी.....
ना बात मैं तेरी करुंगी और न उन राहों का
जिन राहों पर लिखा था दूर जाना
सांसों का चलना एक दिन थम जायेगा
रह जायेगी बस यही कही यादों का ख़ाक में मिलना....
आंखों की नमी कुछ कहने को बेताब थी
धड़कनें मानो सीने में रूठने को तैयार थी
समझ न पाई मैं रातों में पहर का बदलना
अमावस्या से चांद का चांदनी रातों में जलना.....
_Manshi k