एक सादे कपड़े को काँट-छाँट कर
बड़े सलीके से आकार में ढालती हैं।
इंच आधी इंच का हिसाब कर
अंगूठे उंगली के दबाव से सीधा - टेढ़ा काटती हैं
यहाँ से गले की उरेब कटेगी,
यहाँ पोंचे की पट्टी
चॉक से निशान लगा
तीरे को छांटती हैं।
कहीं बाजू पर फूल उकेरती
कहीं पीठ पर फूंदे बना मंदिर की घंटी-से लटका
छाती के उभार को प्लेट में संभालती हैं।
कभी डीप, कभी वी, कभी गोल में सादा
कभी पान पत्ती वाला दिल पीठ पर सरका
बोट के कट पर गर्दन संभालती हैं।
कभी बाजू पर बनाती हैं गुब्बारा
कभी अंब्रेला में घेरा
कभी खूब कलियों की लहर उतारती हैं
कभी फिट पाजामी के बंद पर बटन
कभी लहंगे की लटकन पर घूंघरू संवारती हैं।
कभी जेब बना पेंट में
समेट लेती हैं बटुए
कभी फैला कर दुपट्टा
बना फुलकारी झालर पर इंद्रधनुष उतारती हैं
सब रंग हैं इनके धागों में दुनिया के
ये सिलाई मशीन वाली लड़कियाँ भी कमाल करती हैं।
करोथवाल