दिल की चौखट पे जो इक दीप जला रक्खा है
तेरे लौट आने का इम्कान सजा रक्खा है
साँस तक भी नहीं लेते हैं तुझे सोचते वक़्त
हम ने इस काम को भी कल पे उठा रक्खा है
रूठ जाते हो तो कुछ और हसीं लगते हो
हम ने ये सोच के ही तुम को ख़फ़ा रक्खा है
तुम जिसे रोता हुआ छोड़ गए थे इक दिन
हम ने उस शाम को सीने से लगा रक्खा है
चैन लेने नहीं देता ये किसी तौर मुझे
तेरी यादों ने जो तूफ़ान उठा रक्खा है
जाने वाले ने कहा था कि वो लौटेगा ज़रूर
इक इसी आस पे दरवाज़ा खुला रक्खा है
💕
- Umakant